Loading...
 

A.Nagraj ji

मानव बंधुओं ! मैं अपने में से ही स्वे’छापूर्वक विगत वांड्मयों को समझा हूं। इसमें और किसी का दबाव नहीं रहा। समझने के बाद मेरी एक कामना हुई। कैसी होनी चाहिए यह धरती ? उसके लिए मैं अपने में ही एक उद्गार पाया वह है ‘‘भूमि स्वर्ग हो, मानव देवता हो ! धर्म सफल हो, नित्य शुभ हो।’’

भूमि स्वर्गताम् यातु,
मनुष्यों यातु देवताम्।
धर्मों सफलताम् यातु,
नित्यम् यातु शुभोदयम्।।

A.Nagraj ji
(pustak :Jeevan vidya -ek parichay)

madhyasthdarshan-info

Back