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मानव संचेतनावादी शिक्षा संस्कार पाठ्यक्रम तालिका

कक्षा
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
  शरीर अवयव, मानवीय गुण, स्वभाव, संबंध कर्तव्य दायित्व, आवश्यकता, उपयोगिता, एवं प्रयोजन नियतिवादी शब्दों के साथ जैसे अभय, करुणा, आदि।   अधिकाधिक संबंधों में वर्तनी वाले शब्दों की सूचना जैसे अभय रहना, आदर करना, इंगित करना, उदय होना, इतिहास बनाना।अक्षर बोधकक्षा १ से ५ तक आज्ञापालन पद्धति रहेगी। मूल्य – १) धीरता २) वीरता ३) उदारतासंख्या बोधशरीर इंद्रिय संबंध सहित संख्या बोध कराना जैसे – 5 उंगली, 5 इंद्रिय, आदि। तीन मानवीय मूल्य आदि के द्वारा।
मुल्यांकन : पुस्तक ही को सुरक्षा सदुपयोग का किया गया प्रबोधन उसका आज्ञापालन का मूल्यांकन।
कक्षा
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
संबंधों में वर्तने वाली चरित्र रूपी पाठ जैसे माता बच्चों को समय समय पर प्यार से सेवा करती है बच्चे मां का आज्ञा पालन करते हैं आदि।   इस प्रकार माता-पिता और गुरु का आज्ञापालन करने के संबंध में, और माता-पिता और गुरु से मिलने वाली सचरित्र वादी पाठ।संबंधों की पहचान। संबंधों में वर्तने वाली चरित्र रूपी पाठ जैसे माता बच्चों का समय समय पर सेवा करती है, बच्चे मां का आज्ञा पालन करते हैं आदि।मूल्य- धीरता, वीरता, उदारता।वस्तुओं का सामान्य पहचान।पाठ्य सामग्रियों की पहचान उसकी उपयोगिता का बोध, धीरे-धीरे पौधों की पहचान और उसका सामान्य उपयोग, इसी के साथ संख्या का विस्तार बोध जैसा वस्तुओं की संख्या घटाने बढ़ाने के क्रम में पाठ।
मूल्यांकनपुस्तिका सामग्री, स्थान की सुरक्षा और सदुपयोग उसका आज्ञापालन का मूल्यांकन।
कक्षा
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
स्नेह, कृतज्ञता, विश्वास, जैसे व्यवहारकारी वाक्य रचना। जैसा साथियों के साथ विश्वास निर्वाह, गुरु, माता, पिता के साथ कृतज्ञता का निर्वाह, भाई व बहन के साथ गौरव सम्मान का निर्वाह।   संबंधों में वर्तने वाली मूल्य और चरित्रकारी पाठ।संबंधों का संबोधन।मूल्य- धीरता, वीरता, उदारता।वस्तुओं की सामान्य उपयोगिता का प्रबोधन उपयोग क्रम की पहचान।विद्यार्थियों के उपयोग में आने वाले, व्यवहार में आने वाली – जैसे पुस्तक का पाठ्य सामग्री वस्त्र आवास अलंकार और वाहन आदि।
मूल्यांकनवस्तुएं, सामग्री, वस्त्र, अलंकार, क्रम का सदुपयोग सुरक्षा और आज्ञापालन पूर्ण व्यवहार का मूल्यांकन।
कक्षा
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
संबंधों में वर्तने वाली व्यवहारवादी पाठ – जैसे – समय के साथ कोइ बीमार पड़ने पर, स्कूल जाने के साथ किसी से मिलने के संबंध में, भोजन, शयन आदि।   मूल्य, चरित्र और नैतिकता का अविभाज्यता, उसका नित्य वर्तमान वादी पाठ। जैसे- मां विश्वासपूर्वक अधिकाधिक बच्चों का संरक्षण पोषण करने का रूप में चरित्र को, और अधिकाधिक वस्तुओं को बच्चों के हित में, सदुपयोग और उसके रखरखाव के रूप में सुरक्षा और नैतिकता का इत्यादि।संबंधों में वर्तनी वाली चरित्र और व्यवहार वादी पाठ। कर्तव्यों का प्रबोधन।मूल्य- धीरता, वीरता, उदारता।वस्तु की सामान्य उपयोगिता का परिचय, आवश्यकता का प्रबोधन।मानवतर प्रकृति को पहचानने की क्षमता, प्रत्येक विद्यार्थी में होने की सत्यता का पाठ। जैसे – जीव, जानवर, पौधे, वृक्ष, जल, वायु, अग्नि, आदि सभी प्रकृति का दृष्टा मानव है।
मुल्यांकनशिक्षा सामग्री, अलंकार कक्षा सामग्रियों की सुरक्षा सदुपयोग कार्यव्यवहार का मूल्यांकन।
कक्षा
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
व्यवहार संचेतना का स्पष्ट रूप, जैसे – माता-पिता, भाई-बहन, गुरु-शिष्य, और मित्र-मित्र संबंधों में वर्तमानकारी पाठ वर्तमान के लिए प्रवर्तन।   व्यवहार संचेतना की अनिवार्यता जैसे – सह-अस्तित्व के लिए सहकारिता और सहभागिता की अपरिहार्यता, कर्तव्य और दायित्व की पहचान जैसे – उत्पादन कार्यों में कर्तव्य का, व्यवहार कार्य, सेवा में दायित्व की पहचान, स्वीकृति के लिए प्रवर्तन, उसको वहन करने की आवश्यकता, उपयोगिता तथा प्रयोजनियता वादी पाठ।संबंधों में वर्तने वाले स्थापित मूल्य एवं शिष्ट मूल्यों का बोध। परस्पर व्यवहार में वर्तने वाली चरित्र अर्थात मानवसंचेतना वादी चरित्र का पाठ।मूल्य- धीरता, वीरता, उदारता।वस्तुओं की आवश्यकता एवं उनकी उपयोगिता का बोध रसायनिक एवं भौतिक सीमा का ज्ञान।भौतिक और रासायनिक परिवर्तन, प्राणावस्था से पदार्थावस्था, पदार्थावस्था से प्राणावस्था में परिवर्तनशील, रसायनिक एवं भौतिक सीमावर्ती प्रकृति का बोध। मानव उसका दृष्टा होने का ऐश्वर्य संपन्न इकाई के रुप में प्रबोधन।
मूल्यांकनशालाकक्षा सामग्री, शिक्षाअलंकार सामग्रियों, की सुरक्षा सदुपयोग। शाला और शाला से बाहर विद्यार्थियों का चरित्र चित्रण का मूल्यांकन।
कक्षा
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
कर्तव्य और दायित्व को वहनकारी पाठ। जैसे – उत्पादन की आवश्यकता, परस्पर संबंधों में व्यवहार की अनिवार्यता।   व्यवसाय और चरित्रकारी पाठ जैसे कृतज्ञता आदि स्थापित मूल्यों पूर्वक और शिष्ट मूल्य सहित संबंधों के साथ वर्तने वाली पाठ। चरित्र का आकलन व्यवहार और व्यवसाय में प्रकाशित होने की तथ्यपूर्ण पाठ। समाज के चारों आयामों जैसे- संस्कृति, सभ्यता, विधि, व्यवस्था के अविभाज्य वर्तमान का प्रबोधन।  संबंधों में वर्तने वाली शिष्टता का पाठ। व्यवसाय – मूल्यों में अर्पित-संमर्पित होने का पाठ।मूल्य – वीरता, धीरता, उदारता व दया। नोट- छठी से दसवीं कक्षा तक अनुशासन पूर्वक पाठ,पठन कार्य होगा।सप्राण व निष्प्राण कोशिकाओं का स्पष्ट ज्ञान। कोशिका परस्पर संगठित होने का गुण, उसी में अर्थात, कोशिकाओं में समाहित रहने का स्पष्ट ज्ञान।पदार्थावस्था में निष्प्राण कोशिकाओं के रूप में होने की सत्यता को स्पष्ट कराना। पदार्थावस्था का तात्पर्य मृद,पाषाण, मणि, धातु और समस्त विकारों से है।   पदार्थावस्था विकसित होकर प्राणावस्था में होना, और प्राणावस्था ह्रास हो कर पदार्थावस्था में होने यथार्थता को स्पष्ट करने वाली पाठ। उसकी साक्षी में वनस्पतियां ह्रास होकर पदार्थों में अर्थात मिट्टी आदि में परिवर्तित होता हुआ दिखने, प्रत्येक बीज इसी मिट्टी, गोबर, हवा, पानी और उजालों को पाकर अंकुरित,पल्लवित एवं परिवर्तन हुआ दृष्टांत वादी पाठ।
मूल्यांकनशाला और शालेय सामग्री, परिवार और पारिवारिक कार्य व्यवहार सामग्रियों का सदुपयोग सुरक्षा, अनुशासन।
कक्षा
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
धीरता, वीरता, उदारता और दया की पहचान। जैसा प्रत्येक व्यवसाय व व्यवहार कार्य और सेवा की दृढ़ता के रूप में धीरता को। ऐसी दृढ़ता से विचलित व्यक्ति को दृढ़ता प्रदान करने के रूप में वीरता को। स्वयं की सुविधाओं को आवश्यकतानुसार दूसरों को प्रदान कर प्रसन्न होने के स्वरुप में उदारता को। प्रवर्तित करने वाली पाठ, और प्रवर्तन। जीवन शक्तियों का सामान्य परिचय जैसे मन में होने वाली आशा, और वृत्ति में होने वाली तूलन, चित्त में होने वाली चित्रण, बुद्धि में होने वाले संकल्प और आत्मा में होने वाली अनुभूति।मानव मूल्य का परावर्तन ही स्थापित मूल्य और शिष्ट मूल्य में परावर्तित होने का प्रबोधन।मूल्य- धीरता, वीरता, उदारता, दया।परमाणु की पहचान, गठन पुर्वक परमाणु होने की पहचान, एक से अधिक परमाणुओं से रचित अणु, अणुओं से रचित पदार्थ पिंड की पहचान।परमाणु में विकास होने की सत्यता का पाठ। प्रत्येक परमाणु गठन पूर्वक परमाणु होने का पाठ। प्रत्येक परमाणुओं में एक से अधिक अंशो का गठन होने की सत्यता का स्पष्ट स्वरूप। प्रत्येक परमाणु में मध्यांश और उसके आश्रित अंश होने की सत्यता का पाठ। जो जिससे बना रहता है अर्थात रचनाएं होती हैं, वह उससे अधिक नहीं होता है। इस सिद्धांत पर प्राण कोशिकाएं और निष्प्राण कोशिकाओं की रचना का पाठ, प्रबोधन, और कर्म अभ्यास।   विचार शक्तियों का परावर्तन में व्यवसाय अर्थात उपयोगिता एवं कला मूल्यों को स्थापित करने का पाठ।
मूल्यांकनशाला और शालेय सामग्रियों का सदुपयोग सुरक्षा। परिवार संपर्क एवं गुरुजनों के साथ किए गए व्यवहार का मूल्यांकन।
कक्षा
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
मन, वृति, चित्त, बुद्धि और आत्मा जैसे अक्षय बल और आशा, विचार, इच्छा, संकल्प, और अनुभव-प्रमाण जैसी अक्षय शक्तियां संयुक्त स्वरूप – जीवन शक्तियों का परावर्तन एवं प्रत्यावर्तन की विशालता, आवश्यकता, उपयोगिता व प्रयोजनीयता का पाठ। देखना ही समझना, समझना ही देखना, सिद्धांत के आधार पर पहचान क्षमता और उसकी अक्षयता का पाठ।   अक्षय बल और अक्षय शक्तियों का संयुक्त स्वरूप ही संचेतना होने का पाठ।   संज्ञानशीलता और संवेदनशीलता का संयुक्त प्रभावशीलन ही जीवन का परावर्तन एवं प्रत्यावर्तन होने का पाठ।   समाज के चारों आयाम और जीवन के चारों आयाम के संबंध में व्यवहारिक पाठ।जीवन की पहचान, जीवन की जागृति की पहचान।मूल्य- धीरता, वीरता, उदारता, दया।परमाणु में गठनपूर्ण होने की सत्यता का पाठ।मानवतर प्रकृति के साथ संतुलित संबंध की पहचान, व्यवसाय की अनिवार्यता, व्यवसाय पद में मानव की विशेषता – व्यवसायकर्ता, दृष्टा, और निर्माता मानव ही होना वैभव का पाठ। मानव मानवतर प्रकृति का ज्ञाता होने के मूल कारण वह चैतन्य इकाई होने का पाठ। चैतन्य इकाई गठनपूर्णता से संपन्न एक परमाणु होने का पाठ।   विचार शक्ति ही व्यवसाय पूर्वक मानव प्रकृति में उपयोगिता मूल्य और कला मूल्य को (निपुणता और कुशलता) स्थापित करने की व्यवस्था का पाठ। उस की अनिवार्यता का प्रबोधन।
मूल्यांकनगाँव, मोहल्ला, शाला परिवार में किया गया व्यवहार और चरित्र का मूल्यांकन, शालेय एवं शाला परिसर परिवारिय वस्तुओं का सदुपयोग सुरक्षा का मूल्यांकन।
कक्षा
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
चैतन्य शक्तियां अर्थात आशा, विचार, इच्छा, संकल्प और अनुभूतियां, शरीर के द्वारा प्रकाशित होना ही व्यवस्था का पाठ, जैसे चैतन्य शक्तियों का संकेत मेधास में होना, मेधास के द्वारा संपूर्ण शरीर का संचालित होना, फलतः कार्य व्यवहार संपादित होने का जो यथार्थ है उसे स्पष्ट करने का पाठ। अधिक बल और शक्ति कम बल और शक्ति के माध्यम से प्रकाशित होने की व्यवस्था का पाठ। संचेतना के परिष्कृति क्रम में मानव संचेतना का स्वरूप और न्याय पूर्ण व्यवहार का आधार होने का पाठ। समाज मूल्यों का निर्वाह ही न्यायिक होने का पाठ, और न्यायिकता ही दायित्व होने का पाठ।   जीवन का परिचय, जीवन मूल्य का परिचय। जीवन मूल्य के अर्थ में मानव मूल्य, मानव मूल्य के अर्थ में व्यवहार मूल्य, व्यवहार मूल्य के अर्थ मे व्यवसाय मूल्य सार्थक होना ही सदुपयोग और सुरक्षा होने का तथ्यपूर्ण पाठ। तन मन धन रुपी अर्थ का सदुपयोग ही धर्म नीति, राज्य, समाज नीति, होने के तथ्य का पाठ। फलतः तन-मन-धन रूपी अर्थ का सदुपयोग और सुरक्षा ही नैतिकता होना की, यह चरित्र और मूल्य से अविभाज्य होना के तथ्य का प्रबोधन।मानव जड चेतनात्मक प्रकृति का संयुक्त साकार रूप में होने का पाठ। न्यायपूर्ण जीवन कार्य व्यवहार विन्यास का प्रबोधन।मूल्य – धीरता, वीरता, उदारता, दया।चैतन्य इकाई मूलतः एक परमाणु होने के कारण, परमाणु प्रस्थापन विस्थापन से मुक्ति ही गठनपूर्णता का अर्थ होने के कारण, गठनपूर्ण इकाई में अक्षुण्यता स्वयं सिद्ध हो जाती है।गठनपूर्ण परमाणुओं की (चैतन्य इकाई) रचना, उसकी सीमा, उसकी पहचान उसकी अक्षयशीलता का पाठ। संपूर्ण रचनाएं यांत्रिक होने का तथ्य। यांत्रिक अक्षयशील होने का तथ्य। संपूर्ण यांत्रिक क्रिया का दृष्टा, सृष्टा, और कर्ता का स्वरूप मानव होने की सत्यता का प्रतिपादन। मानव संचेतनशील होने का तथ्य। वह संचेतना पूर्वक ही उक्त सभी कार्य को संपादित करने का तथ्य। अक्षय बल, अक्षय शक्तियों का संयुक्त रूपी संचेतना होने के कारण। संज्ञानशीलता व संवेदनशीलता का सिद्ध होना का पाठ, संचेतना के अभाव में दृष्टापन अर्थात अनुभव करने की क्षमता नहीं होती है। अनुभव प्रमाण परम होने का पाठ।
मुल्यांकनतनमनधन रुपी अर्थ का सुरक्षा और सदुपयोग। संबंधों में कृत, कारित। अनुमोदित व्यवहार, व्यवसाय के प्रति कर्तव्य की जागृति का मूल्यांकन।
 
कक्षा १०
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
विवेक की परिभाषा और इसकी आवश्यकता एवं प्रयोजनीयता का पाठ। बौद्धिक नियम, समाजिक नियम, और प्राकृतिक नियम का पाठ। मूल प्रवृतियों के स्पष्ट स्वरूपों का प्रबोधन। आवेशित गति और स्वभाव गति का प्रबोधन, जीवन की अविरत क्रियाशीलता और उसके लक्ष्य का बोध। जीवन शक्तियों का परावर्तन प्रत्यावर्तन के फलस्वरूप जीवन कृति की नित्य अभीष्ट की पहचान। राष्ट्र चेतना और समाज चेतना का अविभाज्य वर्तमान का पहचान समाज का सार्वभौम अभिष्ट जैसा समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व का पहचान।   जीवन तृप्ति का पहचाना जैसे समाधान व प्रमाणिकता, प्रमाण और प्रमाणिकता नित्य प्रबोधन। उसकी निरंतरता आवश्यकता, उपयोगिता, और प्रयोजनीयता का पाठ। समाज संचेतना के अर्थ में समाज संचेतना की पहचान जैसा व्यक्ति का परिचय समाज, राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय, नित्य सामरस्यता का सूत्र प्रमाणिकता व समाधान होने का पाठ।जीवन के नित्यता और शरीर की नश्वरता का बोध, व्यवहारिक जीवन के लिए आवश्यक के नियमों का बोध।मूल्य- धीरता, वीरता, उदारता, दया।विकास के क्रम में चारों अवस्थाओं की पहचान, चारों अवस्थाओं में विकास का क्रम संबंध।विज्ञान की परिभाषा समझ कर ही आदमी देखता है, जैसा जिसको जो देखता है उसकी संपूर्णता उसकी आंखों में नहीं आती। प्रत्येक ईकाई में रूप, गुण, स्वभाव, धर्म वर्तने का प्रबोधन।   आंखों में केवल रूप, उसमे भी केवल दो आयाम अर्थात रूप में आकार आयतन धन तीन आयाम होते हैं। उसमें से आकार, आयतन ही आंखों में आती है। आकर, आयतन ज्यादा से ज्यादा 180 डिग्री देखने में आता आने का पाठ। देखने से अधिक समझ प्रत्येक मानव में होने का प्रबोधन। जो जितना जानता है वह उतना चाह नहीं पाता, जितना चाहता है उतना कर नहीं पाता, जितना करता है उतना भोग नहीं पाता का पाठ। प्रत्येक रचना भौतिक और रासायनिक सीमा में संपन्न होने का पाठ सबका, दृष्टा जीवन होने का पाठ।
मूल्यांकनतन,मन, धनात्मक अर्थ का सदुपयोग और सुरक्षा, अनुशासन चरित्र संबंधी मूल्यांकन।
कक्षा ११
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
मानवीयता की सीमा में मानव अपव्ययों से मुक्ति होने, तन-मन-धनात्मक अर्थ का सदुपयोग व सुरक्षा करने योग्य है का पाठ। मानवीयता की सीमा में मानव संयत होने के कारण आवश्यकताएं सीमित होने की सत्यता का पाठ।   मानवीयता की सीमा मानव की आवश्यकताएं सीमित होने के कारण अधिक उत्पादन कम उपभोग योग्य होने की व्यवस्था का पाठ। प्रत्येक मानव का अभिष्ट और लक्ष्य समन्वय और प्रमाणिकता होने की यथार्थ का पाठ। मानव के चारों आयाम व्यवसाय, व्यवहार, विचार, और अनुभूति में सामरस्यता का आधार प्रमाणिकता व समाधान होने की व्यवस्था का पाठ।   जीवन सामरस्यता पूर्ण मानव ही पूर्ण तथा सामाजिक होने का पाठ।   समाजिकता मूल्य और मूल्यांकन न्याय सुलभ एवं विनिमय सुलभ होने की व्यवस्था का पाठ। न्याय सुलभता व विनिमय सुलभता ही समाज का चारों आयाम संस्कृति, सभ्यता, विधि, व्यवस्था में परिपूर्ण और उसकी उसका निरंतरता होने का पाठ।मानवीयता ही मानव का स्वत्व होने का प्रबोधन, स्वत्व ही स्वतंत्रता और अधिकार का आधार होने का प्रबोधन।मूल्य – धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा, करुणा। नोट ११ से १४ कक्षा तक स्वानुशासन व्यवस्था रहेगी।विकास के क्रम में गठन पूर्णता के अनंतर जीवन में क्रियापूर्णता और आचरण पूर्णता होने और उसके निरंतरता होने की सत्यता का प्रबोधन।कारण, गुण, गणित पूर्वक निर्णय पाने की व्यवस्था का पाठ। आंखों में जितना देखने को मिलता है उससे अधिक समझ में आता है का पाठ।   जो जैसा है उसे वैसा समझना ही स्पष्ट समझ अथवा सार्थक समझ होने का प्रबोधन। स्थिति सत्य, वस्तुगत सत्य, वस्तु स्थिति सत्य का प्रबोधन, फलतः अस्तित्व कैसा है का पाठ, साथ ही कितना है की आवश्यकता अनुरूप होने का पाठ।   १) स्थिति सत्य – सत्ता में संपृक्त प्रकृति ही अस्तित्व सर्वस्व होने का पाठ। २) वस्तुस्थिति सत्य में देश दिशा काल। ३) वस्तुगत सत्य मे रूप, गुण, स्वभाव, धर्म का अध्ययन।   विज्ञान तकनीकी संबंधी उत्पादन कुशलता का निपुणता का प्रबोधन और कर्म अभ्यास।
मूल्यांकनव्यवहार में चरित्र अर्थात शिष्टता, व्यवसाय में कर्म अभ्यास तथा स्वानुशासनपूर्वक किया गया तनमन धनात्मक अर्थ का सदुपयोग और सुरक्षा का मूल्यांकन।
कक्षा १२
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
गुणात्मक विकास अमानवीयता से मानवीयता से अतिमानवीयता की ओर।   विकास के इतिहास में तीन चक्र जैसे प्राणपद, भ्रान्तिपद, और देव तथा दिव्यपद का प्रबोधन। संचेतना ही परिष्कृत, अपरिष्कृत, परिष्कृतीपूर्ण स्तरों में प्रकाशित होने की सत्यता का पाठ। परिष्कृत चेतना ही मानव संचेतना होने, मानव संचेतना ही संज्ञानशीलता और संवेदनशीलता संतुलित होने का पाठ।   संचेतना ही जागृत, अर्ध जागृत, अल्पजागृत प्रभेदों से प्रकाशित होने की व्यवस्था का पाठ।   जीवन जागृति ही जीवन का परम लक्ष्य होने का पाठ। जीवन जागृति आचरण पूर्णता और जागृति क्रम में ही क्रियापूर्णता की व्यवस्था का पाठ। मानव संचेतना पूर्वक ही सहअस्तित्व होने का पाठ। फलतः तन-मन-धनात्मक अर्थ का सदुपयोग व सुरक्षा संपन्न होने का पाठ। जीवन जागृति ही स्वानुशासन का, जागृत जागृति की अपेक्षा ही अनुशासन का। और जागृति का भास ही आज्ञापालन का आधार होने का पाठ।जीवन संचेतना के स्तरों का स्वरूप। गुणात्मक परिवर्तन के क्रम में क्रिया पूर्णता व आचारण पूर्णता का प्रबोधन।मूल्य – १) धीरता, २) वीरता, ३) उदारता, ४) दया, ५) कृपा, ६) करुणा।सामान्य आकांक्षा व महत्वकांक्षा की सीमा में वस्तुओं के निर्माण करने की आवश्यकता उसकी उपयोगिता व प्रयोजनीयता का प्रबोधन।उपयोगिता मूल्य व सुंदरता मूल्य। उपयोगिता आहार, आवास, अलंकार, दूरश्रवण, दूरगमन, दूरदर्शन के प्रयोजन में होने का पाठ।   उपयोगी वस्तुओं के निर्माण में विज्ञान और तकनीकी पूर्वक प्रबोधन और कुशलता निपुणता पूर्वक कर्माभ्यास।
मूल्यांकनस्वानुशासन उत्पादन क्षमता का मूल्यांकन।
कक्षा १३
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
सत्ता में संपृक्त प्रकृति अस्तित्व सर्वस्व। अस्तित्व न घटती ना बढ़ती है, अरूपात्मक अस्तित्व में ही संपूर्ण रूपात्मक अस्तित्व ही क्रियाशील है। संपूर्ण इकाइयों की परस्परता में अरूपात्मक दिखाई पड़ता है। मूल्य स्वयं में, जैसा विश्वास स्वयं में जैसा अरुपात्मक अस्तित्व है। विश्वासपूर्वक ही परस्पर मानव सहअस्तित्वशील है। मानव ही मानव के विकास और ह्रास का प्रधान कारण है, जड़-चैतन्यात्मक प्रकृति सत्ता में नियंत्रित है। सत्ता ही व्यवसाय काल में नियम, व्यवहार कार्य में न्याय, विचार काल में समाधान, अनुभव काल में सत्य के नाम से जाना जाता है का प्रबोधन का पाठ। शिक्षा प्रदान करने के लिए योग्यता अनुसार उचित कक्षाओं में अवसर प्रदान करने की व्यवस्था का पाठ और अभ्यास।स्थिति सत्य – सत्ता में संपृक्त प्रकृति होने फलतः सत्य में अनुभूत होने पर्यंत विकास के लिए बाध्य होने का पाठ।मूल्य – १) धीरता, २) वीरता, ३) उदारता, ४) दया, ५) कृपा, ६) करुणा।मध्यस्थ क्रिया और मध्यस्थ शक्ति का प्रबोधन।प्रत्येक परमाणु के मध्य में स्थित अंश मध्यस्थ होने का पाठ।   मध्यस्थ क्रिया में ही मध्यस्थता शक्ति का नित्य प्रसारण होने का पाठ।   प्रत्येक इकाई सत्ता में संपृक्त होने के कारण ऊर्जामय, फलतः आकर्षण विकर्षण वादी गति कार्य विन्यास प्रबोधन।   आकर्षणवादी कार्य विन्यास ही अंशों को परमाणु में गठित होने, परमाणुऐ, अणुएं, कण, और कई कण का संयुक्त स्वरुप संगठित पदार्थ पिंड के रुप में होने का पाठ।   चाहे प्राण कोशाएं हो या निष्प्राण कोषाएं, यह सभी रसायनिक भौतिक सीमा में होने और जड़ चैतन्य का संयुक्त आकार मानव इन सबका दृष्टा होने का पाठ तथा संपूर्ण मापदंड का निर्माण मानव द्वारा होने का पाठ।   उत्पादन क्रम विज्ञान व तकनीकी पूर्वक कुशलता निपुणता वादी पद्धति से कर्म अभ्यास।
मूल्यांकनस्वनुशासन तथा उत्पादन क्षमता का मूल्यांकन शिक्षित करने का पाठ।
कक्षा १४
शिक्षा पाठशिक्षा वस्तुशिक्षा नीतिशिक्षा वस्तुशिक्षा पाठ
मध्यस्थ क्रिया, मध्यस्थ शक्ति के आधार पर सम विषम का संतुलित होने का पाठ। प्रत्येक आवेश सामान्य होने की स्थितियों का पाठ। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य मूल प्रवृतियाँ न होने का पाठ।   आवेशित गतियां मूल प्रवृतियां ना होने मूल प्रवृतियां जीवन का ऐश्वर्य होने का पाठ, मानव में मूल प्रवृत्तियां असंग्रह, स्नेह, विद्या, सरलता, और अभय ( विश्वास) का पाठ। परिष्कृत जीवन संचेतना में इन सभी मूल प्रवृत्तियां वर्तमान होने का पाठ।   विकास, विकास का इतिहास, जीवन घटना, जीवन में जीवनी क्रम, जीवन जागृति का कार्यक्रम ही सामाजिक कार्यक्रम, समाजिक कार्यक्रम ही जीवन का कार्यक्रम होने का पाठ।   प्रमाण ही पाठ, पाठ ही प्रबोधन की वस्तु, प्रबोधन ही समाधान के रूप में बोध होने का पाठ।समाधानात्मक भौतिकवाद, व्यवहारात्मक जनवाद, अनुभवात्मक अध्यात्मवाद का पाठ।मूल्य – १) धीरता, २) वीरता, ३) उदारता, ४) दया, ५) कृपा, ६) करुणा।अस्तित्व की स्थिरता विकास की निश्चियता का पाठ।सत्ता में संपृक्त प्रकृति ही अस्तित्व सर्वस्व अस्तित्व कैसा है सिद्ध हो जाता है और अस्तित्व कितना है की आवश्यकता सिद्ध नहीं होती।   आवश्यकता, उपयोगिता, और प्रयोजनीयता के अर्थ में ही पहचान होती है। सत्ता अरूपात्मक अस्तित्व, संपृक्त प्रकृति रूपात्मक अस्तित्व, प्रकृति अनंत इकाइयों का समूह है।   किसी भी एक इकाई का नाश नहीं होता। सत्ता में संपृक्त प्रकृति नित्य साम्यरस है। सत्ता में संपृक्त प्रकृति सत्ता में अनुभव पर्यंत विकास के लिए बाध्य है। विकास स्वयं में क्रम है। क्रम स्वयं में नियति है। नियति स्वयं व्यवस्था है। सत्ता में संपूर्ण प्रकृति नियंत्रित है, नियम ही न्याय, न्याय ही धर्म, धर्म ही सत्य सत्य ही ईश्वर, ईश्वर ही आनंद है आनंद ही जीवन है, जीवन ही नियम है।
मूल्यांकनस्वनुशासन, उत्पादन क्षमता और शिक्षा प्रदान करने की अर्थात आज्ञापालन कराने की क्षमता का मूल्यांकन।

1. शिक्षा के लिए विकल्प 

आदिकाल से ही मनुष्य-परंपरा में शिक्षा की बात है। यह जंगल-युग से ही है। शिक्षा के बारे में आदमी चर्चा करते ही आया है। इस क्रम में हमारे देश में वैदिक-शिक्षा की बात आयी। दूसरे देश में बाइबिल को शिक्षा में लाने की बात हुई। तीसरे देश में कुरान को शिक्षा में लाने की बात हुई। ऐसे ही विभिन्न प्रकार की शिक्षा-परम्पराएं धरती पर स्थापित हुई। यह क्रम चलते-चलते आज के समय में विज्ञान-शिक्षा का सभी देशों में लोकव्यापीकरण हो चुका है। विज्ञान-शिक्षा से अपेक्षा थी कि इससे सबको तृप्ति मिलेगी, लेकिन इससे तृप्ति मिला नहीं।

अभी तक जो कुछ भी शिक्षा में आया, उसके “विकल्प” के रूप में मध्यस्थ-दर्शन का “चेतना-विकास, मूल्य-शिक्षा” का प्रस्ताव है। जंगल युग से आज तक आदमी जीव-चेतना में जिया है। मनुष्य ने जीव-चेतना में जीते हुए, जीवों से अच्छा जीने के क्रम में शरीर-सुविधा से सम्बंधित सभी वस्तुएं प्राप्त कर लीं। इसमें खाने-पीना, कपड़ा, मकान, यान-वाहन, दूर-संचार की सभी वस्तुएं शामिल हैं। यह सब होने के बावजूद मनुष्य को शिक्षा से संतुष्टि नहीं मिली। इसका मूल कारण यह है – मनुष्य ज्ञान-अवस्था का है, और उसको जीव-चेतना की शिक्षा से संतुष्टि मिल नहीं सकती। 

इसलिए “विकसित चेतना” के अध्ययन को शिक्षा में लाने के लिए प्रस्ताव है। मानव-चेतना, देव-चेतना, दिव्य-चेतना “विकसित चेतना” है। इस तरह जी कर मनुष्य “कृत-कृत्य” हो सकता है। “कृत-कृत्य” होने का मतलब है – मानव जिस बात के लिए ज्ञान-अवस्था में उदय हुआ है, वह सार्थक होना। इस प्रस्ताव के संपर्क में जो भी आये हैं, उनका यह स्वीकृति है – ऐसा होना बहुत ज़रूरी है। 

परिवार में हर व्यक्ति मानव-चेतना में पारंगत हों, देव-चेतना में जी सकें, दिव्य-चेतना को प्रमाणित कर सकें – ऐसा “अधिकार” बन सके। कितने लोग इस तरह पारंगत हुए, कितने लोग इस तरह प्रमाणित हो सकें – इसको पहचानने के लिए इस अनुभव-शिविर का आयोजन है।

“चेतना-विकास” से आशय है – मानव-चेतना में जीने के लिए विश्वास स्वयं में पैदा होना। मानव के लिए मानवत्व ही स्वत्व के रूप में पहचानने की आवश्यकता है। देवत्व और दिव्यत्व श्रेष्ठतर और श्रेष्ठतम हैं। मानवत्व से श्रेष्ठता की शुरुआत है। इस आधार पर इसके लिए पारंगत होने की बात आती है।

मानवत्व का क्रिया-स्वरूप है – मानव के साथ न्याय-धर्म-सत्य पूर्वक जी पाना, और मनुष्येत्तर प्रकृति के साथ नियम-नियंत्रण-संतुलन पूर्वक जी पाना। यदि ऐसे जीना बन पाता है तो हम परिवार में व्यवस्था पूर्वक जी पाते हैं। मानव-चेतना पूर्वक मनुष्य समाधानित होता है, और परिवार में “समाधान-समृद्धि” प्रमाणित करने योग्य होता है। इस प्रकार मनुष्य के जीने में विषमता समाप्त होता है। विषमता समाप्त होने का पहला मुद्दा है – “नर-नारी में समानता”। समझदारी को ही नर-नारियों में समानता के बिंदु के रूप में पहचाना जा सकता है। यदि इस बिंदु को पाना है, तो मानव-चेतना को अपनाना ही होगा। मानव-चेतना के इस प्रस्ताव को लेकर हम इस घर के बाहर तक तो पहुच गए हैं, पर यह संसार तक पहुँच गया – मैं इस पर अभी विश्वास नहीं करता हूँ। अब हमारी सभी की जिम्मेदारी है – यह प्रस्ताव संसार में जल्दी से जल्दी कैसे पहुंचे। “जल्दी” इसलिए आवश्यक है – क्योंकि धरती बीमार हो चुकी है, प्रदूषण छा गया है, अपराध-प्रवृत्ति बढ़ गयी है, अपने-पराये की दूरियां बढ़ गयी हैं।

आज की स्थिति में सभी देशों को यह चेतावनी हो चुकी है – इसी तरह हम चलते रहे तो धरती बचेगा नहीं! धरती को बचाना है तो मनुष्य का भ्रम-मुक्त, अपराध-मुक्त, और अपने-पराये की दीवारों से मुक्त होना आवश्यक है। अधिकाँश लोग धरती को बचाने के पक्ष में हैं। इने-गिने लोग ही धरती को न बचाने के पक्ष में होंगे। धरती को बचाने के लिए मानव-चेतना के प्रस्ताव को हरेक व्यक्ति के पास ले जाने की ज़रुरत है।

इस प्रस्ताव को स्वीकारने में वृद्ध पीढ़ी को सबसे ज्यादा तकलीफ़ है, प्रौढ़ पीढ़ी को उससे कम, कौमार्य पीढ़ी को उससे कम, और बाल्य- पीढ़ी को सबसे कम तकलीफ है। यह हमारे सर्वेक्षण में आया है। तकलीफ का कारण है – उनके पूर्वाग्रह और पूर्वाभ्यास। 

विज्ञान-शिक्षा के लोकव्यापीकरण क्रम में सभी देशों में शिक्षा-संस्थाएं स्थापित हो चुके हैं। इस प्रस्ताव को शिक्षा-संस्थाओं में पहुंचाने की आवश्यकता है। 

इस प्रस्ताव को शिक्षा-संस्थाओं में पहुंचाने का स्वरूप क्या होगा? इस प्रस्ताव को शुद्धतः पहुंचाने की आवश्यकता है। छत्तीसगढ़ में राज्य-शिक्षा संस्थानों में इस प्रस्ताव को समझाने की शुरुआत की गयी – जिससे “सफलता” की शुरुआत हुई। शिक्षा-संस्थानों के अध्यापक और अधिकारी दोनों इससे सहमत हुए। सहमत होने के बाद अध्ययन शुरू किये।  अध्यापकों द्वारा बच्चों तक यह शिक्षा पहुँचने लगेगी तो हम इस बात का प्रमाण हुआ मानेंगे। यदि छत्तीसगढ़ में यह पूरा पहुँचता है तो आगे दूसरे राज्यों में भी पहुंचेगा। 

– अनुभव शिविर, अमरकंटक – जनवरी २०१० – में बाबा श्री नागराज शर्मा के उदबोधन से

2. चेतना विकास मूल्य शिक्षा का लघु प्रस्ताव

यह प्रस्ताव अभ्युदय {सर्वतोमुखी समाधान के अर्थ में } के संदर्भ में है, जिसका प्रत्यक्ष रूप प्रतिभा एवं व्यक्तित्व का संतुलित उदय है। यह आपकी स्वीकृति हेतु प्रस्तुत है।

मानवीय शिक्षा नीति का आधारभूत मध्यस्थ दर्शन, विकास के क्रम में वास्तविकताओं के आधार पर नि:सृत जीवन दर्शन है जिसमें द्वंधात्मक भौतिकवाद के स्थान पर समाधानात्मक भौतिकवाद, संघर्षात्मक जनवाद के स्थान पर व्यवहारात्मक जनवाद, रहस्यात्मक अध्यात्मवाद के स्थान पर अनुभवात्मक अध्यात्मवाद प्रतिपादित हुआ है। इसी में सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक-राज्यनिती का विश्लेषण है। यह भौतिक समृद्धि एवं बौद्धिक समाधान को बोधगम्य एवं हृदयंगम कराता है। जिसके लिए मानव में चिर प्रतीक्षा रही है। यही “विकल्प” है।

इस प्रस्ताव के संबंध में आपके द्वारा उठाए गए कदम एवं की गई प्रक्रिया की जानकारी अविलंब प्रदान कर अनुग्रहित करें।

भवदीय

ए. नागराज शर्मा

अमरकंटक  



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