लेखिका परिचय: सुचित्रा श्रीवास्तव
मेरा नाम सुचित्रा श्रीवास्तव है। मैंने 2011 में लेखन की शुरुआत की। लिखने की प्रेरणा मुझे परम पूज्य नागराज जी बाबाजी के सान्निध्य में मिली, जब मेरे मन में यह विचार आया कि मैं अन्य लोगों के लिए उपकारी बन सकूं। प्रकृति, मानव प्रवृत्तियां, बच्चों की गतिविधियां, जीवन की सच्चाइयां, प्रेरणादायक घटनाएं और पारिवारिक वातावरण मेरे लेखन के मुख्य स्रोत रहे हैं।
अब तक मैंने जो कुछ लिखा है, वह अधिकतर मेरे विचारों और अनुभवों पर आधारित है। जब मैं अपनी कहानियों और घटनाओं को दूसरों के साथ साझा करती हूँ, तो वे प्रेरणा का माध्यम बन जाती हैं। क्योंकि ये घटनाएं मेरे अपने जीवन से जुड़ी होती हैं, इसलिए लोग उन्हें सहजता से स्वीकार करते हैं और सच्चाई का प्रभाव उन पर गहरा पड़ता है।
आज की दुनिया में, जहाँ अमानवीय सामग्री तेजी से लोकप्रिय हो रही है, फिर भी हर व्यक्ति के मन में यह प्रश्न बना हुआ है कि सही तरीके से जीना क्या है। मैंने यह अनुभव किया है कि भले ही भौतिकवाद और रहस्यवाद का बोलबाला है, लेकिन हर वर्ग के लोग—बच्चे, युवा, बूढ़े, अमीर या गरीब—सच्चाई और प्रेरक कहानियों की तलाश में रहते हैं। ऐसे समय में, सही और तृप्तिदायक सत्य व प्रेरक कहानियाँ लोगों के लिए सार्थक साबित हो सकती हैं।
ऐसी ही एक घटना मेरे साथ हुई जब मैं बच्चों के लिए स्टोरी बुक खोजने कई बुक डिपो में गई। वहाँ मैंने देखा कि कई स्कूल की सिस्टर भी बच्चों के लिए प्रेरणादायक किताबों की तलाश कर रही थीं, लेकिन उन्हें संतोषजनक सामग्री नहीं मिल पा रही थी। इससे यह स्पष्ट हुआ कि लोगों को वास्तविक और प्रेरक कहानियों की आवश्यकता है।
मुझे मध्यस्थ दर्शन (सह-अस्तित्ववाद) की जानकारी पहली बार 1995 में मिली। मैंने इसे 2013 से गहराई से पढ़ना शुरू किया, जबकि 1996 से ही मैंने इसके विचारों को सुनना और समझना प्रारंभ कर दिया था।
अपने लेखन को मैं समाज, बच्चों और अभिभावकों के साथ साझा करती हूँ। जब उनके अंदर प्रेरणा जागृत होती है, तो मुझे यह विश्वास और प्रेरणा मिलती है कि मेरी रचनाएँ सार्थक हैं।
मैंने अपनी रचनाओं को ‘futureofwriting.org’ वेबसाइट पर प्रकाशित करने और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर साझा करने की सहमति दी है, ताकि ये अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सकें और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का माध्यम बन सकें।