1. नेपथ्य से नेतृत्व तक#


जल,जंगल,जमीन के पर्याय झारखंड में राजमहल की प्राचीन पहाड़ियों, घने जंगलों एवं कठिन चट्टानों के निकट बसे पाषाणनगरी पाकुड़ के आमड़ा पाड़ा प्रखंड स्थित कुश्चिरा ग्राम निवासी स्वर्गीय बृज बिहारी प्रसाद भगत एवं श्रीमती गौरी देवी के तीसरे व सबसे छोटे सुपुत्र प्रमोद कुमार भगत का नाम पूरे इलाके में किसी परिचय का मोहताक नहीं।
सामान्य आर्थिक अवस्था वाले संस्कारी परिवार में सन 1988 में जन्मे प्रमोद भाई अपने तीन भाई एवं तीन बहनों में अत्यंत सौम्य ,मृदु भाषी तथा सरल स्वभाव के धनी थे। इन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा 2004 ईस्वी में तथा उच्चतर माध्यमिक शिक्षा 2006 ईस्वी में स्थानीय शिक्षण संस्थान से पूरी की। स्नातक की शिक्षा पूरी करते-करते अचानक उनकी अति सामान्य सी जिंदगी में असामान्य मोड़ आया, जिसने इन्हें “नेपथ्य से नेतृत्व तक “की यात्रा पर स्वतः गतिशील कर दिया।
सन 2008 ईस्वी में योगगुरु बाबा रामदेव के देशव्यापी अभियान “करो योग रहो निरोग” ने इन्हें इतना प्रभावित किया कि इन्होंने त्वरित निर्णय लेते हुए हरिद्वार के पतंजलि केंद्र की ओर अपना रुख किया तथा संपूर्ण जीवन वही समर्पित करने के अपने दृढ़ निश्चय से सबको अवगत कराया। अत्यंत उद्यमी, उत्साही तथा निष्ठावान इस युवा ने अत्यल्प काल में पतंजलि केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिकाओं में एवम विभिन्न क्षेत्र संबंधी दायित्व - निर्वहन में अपना स्थान सुनिश्चित कर लिया।शीघ्र ही आचार्य बालकृष्ण महाराज तथा बाबा रामदेव के वो प्रिय पात्र हो गए। पतंजलि में 4 वर्षों तक रहते हुए प्रमोद भाई की सेवाभाविता,सहज समर्पित श्रमशीलता, सहयोग भावना और जनकल्याण की मानसिकता ने उन्हें नेतृत्वकारी भूमिका में प्रतिष्ठित किया। योग से जुड़कर उनकी ऊर्जा और भी प्रखर हो गई। यह योग जन-जन तक कैसे पहुंचे, इसमें उनकी प्रतिभा लग गई।
संयोग से पतंजलि केंद्र में जीवन विद्या के परिचय शिविर का तभी आयोजन हुआ, जहां मध्यस्थ दर्शन का परिचय पाकर जैसे इन्हें अनुत्तरित प्रश्नों के हल का प्रतिक्षित मार्ग मिल गया और सह अस्तित्व,संबंध और व्यवस्था से ही सब समाधान संभव है,ऐसा निष्कर्ष बना।फिर तो उनकी यात्रा में एक और मोड़ आया, पद और प्रतिष्ठा इन्हें पूरी नहीं पड़ी ।तृप्ति की तलाश में इन्होंने जीवन विद्या शिविरों की उपलब्ध रिकॉर्डिंग को मनोयोगपूर्वक सुनना शुरू किया।
सन 2014 के आसपास ये पतंजलि केंद्र छोड़कर घर वापस आ गए,आते ही अभ्युदय संस्थान अछोटी रायपुर में अध्ययन हेतु गए। जहां इन्होंने पहले परिचय शिविर की रिकॉर्डिंग फिर से सुनी ,पुनः वांग्मय का पठन- अध्ययन किया।अभ्युदय संस्थान में रहते हुए जीवन विद्या के लगभग सभी वरिष्ठ प्रबोधक भैया- दीदी का इन्हें सान्निध्य और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। अध्ययन करते हुए प्रमोद भाई ने अपने गांव में तथा आसपास के गांव में चर्चाएं तथा गोष्ठी आदि शुरू कर दिया ,स्थानीय परिजनों के बीच शिविर लेने शुरू कर दिए।जीवन विद्या के राष्ट्रीय सम्मेलन 2016 में झारखंड के रामाशंकर भाई से प्रमोद भाई की भेंट हुई और यहां भी शिविर होने चाहिए,ऐसा मन बना। 2017 से देवघर में होने वाले लगभग प्रत्येक सामाजिक शिविरों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।देवघर तथा अन्य विभिन्न स्थानों में कई परिवार के साथ उनका आत्मीय संबंध बना,वो किसी के लिए भाई,किसी के लिए मित्र तो किसी के चाचा और प्यारे मामा थे ।
इस दरम्यान स्वावलंबन हेतु उन्होंने पछुआड़ा गांव के वनकुंज में गौशाला प्रारंभ किया, शुद्ध दूध गांव को मुहैया कराया, साथ ही बच्चों की शिक्षा में भी काम किया।
प्रमोद भाई की पहचान पूरे इलाके में योग शिक्षक के रूप में होने लगी ,साथ ही जीवन विद्या के आयोजित स्थानीय शिविरों में वहां के लोग भी जुड़ने लगे।
इसी क्रम में 2018 ईस्वी में पाकुड़ में जीवन विद्या का सामाजिक शिविर भी संपन्न हुआ।
प्रमोद भाई के कार्यक्षेत्र को देखें तो एक लंबी लिस्ट है :
1. पाकुड़ जिले के आमड़ा पाड़ा प्रखंड एवं अन्य प्रखंड के सरकारी तथा प्राइवेट स्कूलों में योग कक्षाओं का आयोजन
2. आमड़ा पाड़ा कस्तूरबा विद्यालय में योग शिविर, मूल्य शिक्षा एवं रक्षा बंधन जैसी गतिविधियों का आयोजन
3. आमड़ा पाड़ा थाना में योग शिविर
4. पछुआडा, डूमरचीर, महेशपुर ,कुश्चीरा, गोपीकांदर, लिट्टीपाड़ा, पाकुड़ आदि में योग शिविर तथा जीवन विद्या के शिविर का आयोजन ,गोष्ठियों का आयोजन
5. सिंघारशी एयरफोर्स स्टेशन में भी योग कक्षाओं का आयोजन
6. 18 विकलांग बच्चों के इलाज के लिए उदयपुर , नारायण सेवा संस्थान राजस्थान में ले गए।
7. बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष प्रयास, निःशुल्क ट्यूशन, पठन सामग्री का वितरण
8. आसपास के संपर्कित परिवारों को दर्शन से जोड़ने का मूल्य पूर्वक प्रयास
9. मानव तीर्थ में लगभग 2 वर्ष अध्ययन सेवा- सहभाग
10. माइंस रोड रांगा में “मानव आहार” भोजनालय का स्वावलंबन- कार्य प्रारंभ ,साथ ही आसपास के निवासी बच्चों की निःशुल्क शिक्षा
11. देवघर में होने वाले सामाजिक शिविरों में महत्वपूर्ण भागीदारी
इस प्रकार स्वास्थ्य संयम, शिक्षा संस्कार, न्याय- सुरक्षा एवं उत्पादन स्वावलंबन जैसे क्षेत्रों में तृप्तिकर कार्य व्यवहार करते हुए प्रमोद भाई की खुशहाली छलकते रहती थी। मानव के सर्वशुभ की चाहना के अटूट विश्वासी प्रमोद भाई ने अपना समय झारखंड के सर्वाधिक निरक्षर और हाशिए पर रहने वाले लोगों के साथ लगाया। यह सोचकर कि हर मानव समझ सकता है।स्नेह , सहयोग,सम्मान,विश्वासतथा प्रेम जैसे मानवीय मूल्यों की इन्हें भी जरूरत है ,शिक्षा से इन्हें भी संस्कारित किया जा सकता है। सदैव बच्चों की शिक्षा के लिए तत्पर उनका मन सतत सक्रिय रहा करता था।युवाओं के साथ भी उनका बढ़िया काम था,उनकी कक्षा में जो बच्चे शामिल हुए, आज उनमें से कोई नशा नहीं करते, अन्यथा 8 से 9 वर्ष की आयु से ही नशे की लत उन्हें लग जाती थी। नशा मुक्त युवा अपनी जिंदगी को निश्चित रूप से सही दिशा दे सकेगा,इसी आशय से उनके संवाद होते थे। ऐसे सर्वशुभ हेतु संकल्पित उदारमना व्यक्ति की हत्या एक ऐसे व्यक्ति द्वारा हुई जिसके गांव का बच्चा उनके यहां निशुल्क पढ़ाई करने आता था। मानवता के पक्षधर प्रमोद भाई की ऐसी अमानवीय हत्या वास्तव में झकझोर कर रख देती है और आसपास के गांव में शोक - संवेदना और सहानुभूति की उठने वाली गहरी लहर यह बताती है कि इन्होंने रुपया नहीं कमाया, संबंध कमाए और किसी सिरफिरे के अकारण शत्रुता निकाल लेने से उनकी पार्थिव काया भले ही असमय शेष हुई हो किंतु उनकी अपार्थिव कीर्ति काया सदैव निःशेष रहेगी।
जनमानस में उनकी स्मृति सदैव जीवित रहेगी, एक भाई के रूप में,एक मित्र के रूप में,एक पुत्र के रूप में,साथी सहयोगी के रूप में और बच्चों के प्यारे मामा के रूप में उनका संबंध निर्वाह सबके लिए भावपूर्ण रहा।
उनका शहादत बताता है कि
“जहां कहीं है शांति जगत में ,जहां कहीं उजियाला ।
वहीं खड़ा है कोई अंतिम मोल चुकाने वाला।।”

सोनाली भारती,
देवघर
स्रोत:प्रमोद भाई के परिवार तथा उनके मित्र परिवार की स्वानुभूत अभिव्यक्ति

Sonali ji


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