ये जो शून्य मध्य हमारे, सभी को दृष्ट्यमान है,
पहचान जिसकी मात्र अभी तक केवल खाली स्थान है।

है मूल में ऊर्जा स्वरूप व्याप्त जो सर्वत्र है,
अद्वितीय है, नहीं किसी दृश्य-अदृश्य के समान है।

पूर्ण है जो पूर्णता की प्रेरणा का स्रोत है,
है वस्तु अनुभव की शब्द से मात्र भासमान है।

Rajesh Bahuguna ji


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