वैसे तो पूज्य बाबाजी के मेरे ऊपर उपकार को मैं पूरी तरह समझ नहीं सकता, पर इतना पता है कि यह कृपा और करुणा का प्रतीक है। उनकी कृपा से मेरे साथ जो कुछ भी घटित हुआ है, वह सुखद ही रहा है। प्रथम कृतज्ञता दिवस के उपलक्ष्य में जो कुछ भी अनुभूति मुझे हुई है, उसे साझा करने की इच्छा हुई। इस लेख का उद्देश्य मेरे भीतर उनके उपकार की समझ को और गहरा करना है। यदि मेरे अन्य गुरु भाई/बहन को इससे प्रेरणा मिले, तो उसका कारण पूज्य बाबाजी की कृपा और मेरे पूजनीय ज्येष्ठ गुरु भाई/बहन द्वारा उनके उपकार को ईमानदारी से स्वीकारना है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसे श्रेष्ठ आचरण को देखने का अवसर मिला। इसे मैं पूज्य बाबाजी की विशेष कृपा मानता हूँ। अपने भीतर इसके योग्य कोई गुण मैं नहीं देख पाता।
जब मैं पूज्य बाबाजी के पास अमरकंटक में रहने गया, तब मेरे मन में वहां लंबे समय तक रहने को लेकर कई शंकाएं थीं। अंजान लोगों के बीच, बिना बुलाए किसी के घर में रहना, इत्यादि। मेरे जाने के कुछ दिन बाद बाबाजी ने मुझसे पूछा, ‘कितने समय के लिए आए हो?’ मैंने उत्तर दिया, ‘जब तक आप जाने के लिए नहीं कहेंगे।’ पूज्य बाबाजी ने कुछ नहीं कहा। अगले दिन सुबह जब मैं उन्हें प्रणाम करने गया, तो उन्होंने मुझे बैठने को कहा और सहजता से बोले, ‘तुम्हें हमने बहुत ध्यान से देखा है। तुम्हारे अंदर ऐसा कुछ नहीं दिखा, जिसके कारण हमें तुम्हें जाने के लिए कहना पड़े। तुम चाहे तो हमेशा के लिए यहां रह सकते हो।’ यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। मुझसे इतनी बड़ी अपेक्षा! मैंने अपने आपको इस देवता के सामने बहुत छोटा महसूस किया। इस घटना के बाद उस घर और परिवार से मेरा संकोच समाप्त हो गया, और मैं वहां लंबे समय तक रह पाया।
कुछ दिन बाद उन्होंने आदरणीय साधन भैया से कहा कि वे जितना हो सके, उतना मेरे साथ समय बिताएं। इसके बाद से आज तक जब भी मैं उनके पास जाता हूँ, साधन भैया मेरे साथ बहुत समय बिताते हैं, शायद जरूरत से ज्यादा। उनके इस स्नेह से मैं कई बार लज्जित भी महसूस करता हूँ। जब मैं वहां रहता था, तब मुझे दिनभर चाय पीने की आदत थी। लेकिन चाय मांगने या रसोई में जाकर खुद बनाने में संकोच होता था। साधन भैया या पूजा चाची मेरे लिए चाय बनाते थे। कई बार अंबा दीदी भी सहजता से चाय पिला देतीं। धीरे-धीरे मुझे अहसास हुआ कि मैं क्या कर रहा हूँ और इस आदत पर पछतावा हुआ। मैंने चाय छोड़कर दिन में सिर्फ दो बार कॉफी पीना शुरू किया। इस बदलाव ने मेरे भीतर आत्मविश्वास को बढ़ाया और मुझे लगा कि अब मैं अपने जीवन में कुछ भी कर सकता हूँ।
अमरकंटक जाने के कुछ दिन बाद एक दिन पूज्य बाबाजी की सांसें बहुत तेज चलने लगीं। लगभग तीन दिन तक उन्हें बहुत शारीरिक कष्ट हुआ। अंबा दीदी और साधन भैया उनकी सेवा में लगे रहे लेकिन पूरी तरह निश्चिंत भी दिखे। इस घटना ने मुझे हैरान कर दिया, क्योंकि परिवार में किसी ने कोई विशेष चिकित्सा का प्रयास नहीं किया। तीसरे दिन बाबाजी अचानक पूरी तरह स्वस्थ हो गए। इस घटना ने मुझे बहुत प्रभावित किया और मैंने महसूस किया कि उनकी कृपा की गहराई को समझना आसान नहीं है।
एक दिन पूज्य बाबाजी ने मुझे बताया, ‘अस्तित्व में समय जैसी कोई वस्तु नहीं होती। समय मानव निर्मित है।’ इस बात ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया और मेरे उतावलेपन को शांत कर दिया। उनके आशीर्वाद से मेरी जीवन में स्थिरता और स्पष्टता आई।
पूज्य बाबाजी के परिवार में सभी लोग सेवा में तत्पर रहते हैं। उनका जीवन सरलता और समर्पण का उदाहरण है। मैंने देखा कि उनके दोनों सुपुत्र वर्षों तक मेहमानों के बाद ही भोजन करते थे। बाबाजी की उपस्थिति में कोई भी भोजन कक्ष में नहीं खाता था, सब लोग रसोई में या जमीन पर बैठकर भोजन करते थे ताकि मेहमानों को कोई असुविधा न हो। इस परिवार का श्रम और सेवा भाव अद्वितीय है।
पूज्य बाबाजी के वचनों और आचरण से मुझे जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक मिले। उनके उपदेशों ने मेरे भीतर करुणा, सह-अस्तित्व और विनम्रता का भाव उत्पन्न किया। मैंने सीखा कि गुरु की कृपा से जीवन में जो भी परिवर्तन आता है, वह हमें जागरूक और बेहतर इंसान बनाता है।
यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे पूज्य बाबाजी का सान्निध्य और उनके मार्गदर्शन का अवसर मिला। उनकी कृपा और करुणा के प्रति मैं सदैव कृतज्ञ रहूँगा। उनका उपकार असीमित है और इसे चुकाना असंभव है। मैं केवल कृतज्ञता के साथ उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का प्रयास कर सकता हूँ।
यह पुस्तक ‘चरित्र चित्रण’ से लिया गया एक अंश है।
प्रथम कृतज्ञता दिवस का आयोजन पूर्णिमा, 27 नवंबर 2023 को नवनिर्मिती तीर्थ, किरारी तपोपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ।