तुम्हारी चिंता नहीं होती

ग़ज़ब थी मैं
डरती भी खूब थी
दुखी भी खूब रहती थी
और चिंता भी खूब करती थी

आचरण अनिश्चित था
मन में शिकायतों का
पुलिंदा भी था
और मैं बुरी-सब बुरे थे

डरती और चिंता करती
डर डर के दुखी रहती
दुखी रहती चिंता करती
चिंता करते करते डरती रहती

चिंता करती
कल्पनाओं में ही
कभी जो घटना घटी नहीं
उसको घटवाती और डरती रहती

कभी जिसने मुझे अपमानित किया
भविष्य में उसके एक्सीडेंट
या उसके साथ बुरा घटवाती
और सेवा कर उसपे एहसान दिखाती

कभी बच्चे बीमार हो जायें
तो भविष्य में
अपने ही बच्चों की मृत्यु की कल्पना कर
दुखी होती,पूरी रात रोती रहती

कभी जिसने मेरा अपमान किया
उस के साथ भविष्य में क्या क्या बुरा हो सकता है ये सोचती
जितना मैं तड़फ़ी तरसी और ख़ून के आँसूँ बहाई,उसके भी निकलेंगे ये सोचती

भविष्य की इन अनिश्चितताओं में
एक कल्पना और जुड़ती थी
मैं बीमार इसलिए पड़ूँ कि
पति मेरी सेवा करे,तो लो अब !

एक बार तो हद ही थी
जब कुछ लोगों ने खूब चोट पहुंचाई
तो ठान ली थी कि इनकी भी दुनिया में आग लगा दूँगी फिर ख़ुद ही बुझाऊँगी
भविष्य में ख़ुद को इस से सुखी होते देखती

कितनी ही ऐसी अनिश्चितताओं से
अपने आप को घायल किया मैंने
सालों साल ख़राब किए अपने
ख़ुद को भयग्रस्त दुखी किया मैंने

हज़ार बार गिड़गिड़ाती थी
बाबा,मुझे सुखी-सतर्क रहना है
इतनी तीव्र पीड़ा की नसें भिंच जाती थी
इतनी पीड़ा कि घंटों घुटनों पर बैठ खुशियों की भीख माँगती थी

गुरु मेरे बहुत महान
अपनी भूत भविष्य वर्तमान के विरोधों के साथ उनके पास जाती
वो देखते ही मुस्कुरा के कहते हम आप के जीने से बहुत खुश हैं
और मेरा भूत भविष्य वर्तमान विरोध धराशायी हो जाता वहीं

धीरे धीरे लगातार पठान से
ख़ुद के पठान की लगन से
ये घटना घटने लगी
मैं सतर्क रहने लगी
कभी ये सतर्कता छूट जाती
तो फिर वो अनिश्चियता घिर आती

ख़ुद का गिरना
ख़ुद ही खड़े होना चलता रहता
कितनी ही मर्तबा ख़ुद से घनघोर नफ़रत की
कितना ही बार सोचा मेरा भविष्य यही है
मेरा कुछ नहीं हो सकता सोच हार मानी

सतर्कता धीरे धीरे पकड़ आने लगी
जब चिंता होती,भय होता
किसी से प्रभावित होती या
अपमान का घूँट पीती

जब ख़ुद को
अपनी नज़रों में गिरा रही होती
या फिर अपने ही अहंकार के सर्प से
खेल रही होती

आवेश में पागल होती
या मोह में
नशे में धुत्त रहती
या सामान्य रहती

हज़ार बार यही सोचती
ये क्या कर रही हूँ मैं
क्यों और कब तक करूँगी मैं
क्या यही मेरी ज़िंदगी है ?

परिमार्जन का एक ही नुस्ख़ा
पूरा काम कर गया
ख़ुद को न्याय दिला गया
इन संवेदनाओं को राज़ी कर गया

ख़ुद को भूत और भविष्य से
खींच के लाने में
वर्तमान में जीना पड़ता है
इसका अभ्यास करना ही मेरा लक्ष्य बन गया

मेरी भक्ति-तन्मयता
मेरी रुचि-पहचान
सब मेरी सतर्कता से जुड़ती चली गईं
मेरा जीना सार्थक करती गई

स्वभाव गति का स्वाद मन ने चख लिया
नुस्खा है सतर्कता
मुझ को मुझे में,मुझे से,मिला गया
सतर्क रहना मेरा-मेरा ही ख़्वाब बन गया

भविष्य तुम्हारी चिंता नहीं होती अब
भूत काल तुम सताते नहीं अब
वर्तमान से विरोध नहीं जब
जीवन अब स्वभाव गति का सरल सुंदर अभ्यास करता है
अपना आचरण स्थिर रहे यही लक्ष्य है
वर्तमान सुंदर सुखद है

21/11/2024
नीति
रायपुर

Neeti ji

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