गीत ज्ञान के गाता चल

1
हे मानव तू नित्य निरंतर,
गली-गली और गांव-गांव,
अमर गीत जीवन संगीत ,
को गाता चल सुनाता चल।

सहअस्तित्व परम संबंध,
नित्य निरंतर जीता चल,
समझता चल समझाता चल,
जीवन के गीत गाता चल।

हे मानव तू केवल शरीर नहीं,
जीवन अमर याद दिलाता चल,
व्यापक नित्य प्रकृति शाश्वत,
नित्य सहअस्तित्व समझता चल।

जीवन के गीत गाता चल,
गीत ज्ञान के गाता चल....

2
संबंध मूल्य में जीकर तू,
होता सुखी समझता चल,
जीवन के गीत गाता चल,
परम संबंध पहचानता चल।

मानव तू नहीं नस्ल-रंग-वर्ग,
संकीर्ण पहचान मिटाता चल,
मानवीय पहचान बनाता चल ,
समझता चल समझाता चल ।

जीवन-शरीर का संयुक्त रूप,
समझता चल समझाता चल,
जीवन के गीत गाता चल,
जीवन लक्ष्य पहचानता चल।

जीवन संगीत बनाता चल,
गीत ज्ञान के गाता चल....

3
समाधान सुख, समृद्धि शांति,
अभय संतोष, सहअस्तित्व आनंद,
समझता चल समझाता चल,
सुख-शांति के गीत गाता चल।

लक्ष्य विहीन रहना समस्या,
लक्ष्य-दिशा में चलता चल,
जीवन एक गीत, संबंध संगीत,
सुनता चल सुनाता चल।

समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व
लक्ष्य और दिशा जागृति में चलता चल,
सुख-शांति-संतोष आंनद फैलाता चल,
जीवन को गीत संगीत बनाता चल।

गीत ज्ञान के गाता चल
माननीय परंपरा बनाता चल....

4
सह-अस्तित्व में जीवन गीत,
संबंधों में नित्य संगीत,
गाता चल, गुनगुनाता चल,
प्रेम से संबंध निभाता चल ।

परिवार-समाज न्यायसूत्र संग,
अखंड समाज बनाता चल,
अकेले नहीं हम साथ-साथ,
गीत प्यार के तू गाता चल।

समाधान संवाद, व्यवहार न्याय
में संगीत मूल्य के, गाता चल
न्याय पूर्ण संबंध, व्यवहार में
मानव छवि को बनता चल।

गीत ज्ञान के गाता चल,
न्याय परंपरा बनाता चल....

5
श्रुति का प्रगटन ध्वनि, नाद,
शब्द, भाषा, साहित्य प्रवाह,
काव्य अभिव्यक्ति श्रुति प्रकाशन,
पढ़ता चल, पढ़ाता चल।

श्रुति सहज लय-गति-तरंग
भाषा, साहित्य, काव्य के रंग
श्रुति का प्रगटन गीत-संगीत,
सुनता चल, सुनाता चल ।

संबंध संवाद नित्य सुर-ताल,
समाधान संवाद जीवन में गीत
न्यायपूर्ण व्यवहार मानव संगीत
गाता चल गुनगुनाता चल।

गीत ज्ञान के गाता चल चल
जागृत परंपरा बनाता है चल......

6
कांति-रूप, सहअस्तित्व सहज
मानव में छवि, प्रकृति में छटा
व्यवस्थात्मक सौंदर्य पहचान,
जड़-चैतन्य का अनुपम गान।

तालमेल, पूरकता-उपयोगिता,
लय-सुर-संगीत साम्यरस्ता
व्यवस्था सौंदर्य नित्य गान,
गीत परम संबंध के गाता चल।

विवेक-विज्ञान, मेधा-कला,
जागृत परंपरा जिसका प्रमाण,
मध्यस्थ न्याय, मध्यस्थ नियम,
मध्यस्थ गुण, मध्यस्थ क्रिया ज्ञान।

विवेक-विज्ञान तू गाता चल,
व्यवस्था प्रमाण बनाता चल.....

7
बैर-विरोधी, युद्ध और हिंसा
मानव को नहीं अब स्वीकार,
श्रेष्ठ मूल्य जीवन पहचानकर,
स्नेह, प्रेम गीत तू गाता चल ।

अज्ञान, द्वेष, भय, भ्रम, अहंकार
मानव को नहीं अब यह स्वीकार,
अस्तित्व ज्ञान, जीवन ज्ञान
मानवीय आचरण ज्ञान भ्रम मुक्ति

धीरता, वीरता, उदारता, दया
कृपा करुणा है मानव मूल्य
नित्य निरंतर जीता चल
जीना सभी को सिखाता चल चल ।

विश्वास, सम्मान, स्नेह और ममता
श्रद्धा, प्रेम, गौरव गीत तू गाता चल ....

8
जाति, मत, पंथ छोड़ अब,
मानव धर्म अपनाता चल,
मानव प्रेम फैलाता चल,
गीत ज्ञान के गाता चल ।

मानव जाति एक, कर्म अनेक,
मानव धर्म एक, समाधान अनेक,
भूमि अखंड राष्ट्र एक, राज्य अनेक,
को जानता चल, जनाता चल ।

ब्रह्म सत्य, जगत शाश्वत,
अस्तित्व में नित्य संगीत,
सहअस्तित्व सत्य सहज ज्ञान
को गाता चल, सुनाता चल।

अखंड समाज बनाता चल,
मानवता के गीत गाता चल.....

9
ईश्वर एक, देवता अनेक,
जीवन नित्य, शरीर अनित्य,
होना-रहना नित्य सहअस्तित्व,
समझता चल, समझाता चल ।

गीत ज्ञान के गाता चल,
परम सत्य फैलाता चल,
नियम, न्याय, धर्म, सत्य से,
सुख, शांति में जीता चल ।

विवेक समाधान, विज्ञान समृद्धि,
अखंड समाज में होता अभय,
व्यवस्था ज्ञान को समझ कर चल,
मानव में समाधान पहचान सरल ।

सुख, शांति, संतोष, आनंद,
जीवन का यह अनुभव गान,
गाता चल, सुनाता चल
गीत ज्ञान के गाता चल
अंतर्मन में गुनगुनाता चल।....

(कविता में तत्व ज्ञान मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्व से लिया गया है, जिसके प्रणेता पूज्य ए. नागराज अमरकंटक हैं)
काव्य प्रस्तुति : श्री डॉ. सुरेन्द्र पाठक जी
27अगस्त, 2020