युद्ध: अखंड मानव समाज हेतु एक अनावश्यक कार्यक्रम
भूमिका
आधुनिक शिक्षा प्रणाली में हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि हमारा इतिहास युद्ध की कलम से लिखा गया है। हम मानवीय इतिहास की बजाय अमानवीय इतिहास को अधिक पढ़ते और चर्चा करते हैं। विज्ञान की भाषा में, मानव प्रजाति का आगमन इस धरती पर लगभग दो से तीन लाख वर्ष पूर्व हुआ, जबकि पुरातत्त्वविदों के अनुसार, मानव सभ्यता लगभग दस हजार वर्ष पहले अस्तित्व में आई। वहीं, धार्मिक दृष्टिकोण से, विशेष रूप से बाइबल के अनुसार, मानव केवल छह हजार वर्ष पूर्व ही अस्तित्व में आया।

इन तथ्यों का उल्लेख करने का मूल उद्देश्य यह है कि मानव को इस धरती पर आए हजारों वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज भी वह यह नहीं समझ पाया कि मानव जीवन का उद्देश्य क्या है और युद्ध रहित जीवन कैसे जिया जा सकता है? युद्ध चाहे दो देशों के बीच हो या दो भाइयों के बीच, अंततः हार मानवता की ही होती है। भय और नासमझी की चरम सीमा ही युद्ध का रूप ले लेती है। इतिहास में हुए सभी युद्धों ने यही सिद्ध किया है कि युद्ध से केवल मानवता को ही क्षति पहुंची है, चाहे वह आर्थिक, सामाजिक या पर्यावरणीय हो।

कोई भी राष्ट्र युद्ध के माध्यम से वास्तविक अर्थों में सफल नहीं हो पाया, न ही इससे किसी का भला हुआ। गाजा युद्ध, फिलिस्तीन संघर्ष, अफगानिस्तान युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्ध, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध—ये सभी उदाहरण युद्धों के विनाशकारी प्रभावों को दर्शाते हैं। युद्ध न केवल शारीरिक और आर्थिक हानि पहुंचाते हैं, बल्कि मानसिक और सामाजिक कष्टों को भी लंबे समय तक जारी रखते हैं। जब तक मानवता सही समझ नहीं अपनाती, तब तक ये संघर्ष यूं ही चलते रहेंगे।

वर्तमान में, गाजा युद्ध (2023), रूस-यूक्रेन युद्ध (2014 से वर्तमान) और म्यांमार का गृहयुद्ध (2021 से वर्तमान) जैसे युद्धों के चलते लाखों लोगों की जान गई, जबकि लगभग पांच लाख से अधिक लोग आर्थिक, मानसिक और शारीरिक समस्याओं से जूझ रहे हैं।

मानव की मूलभूत आवश्यकताएं—आहार, आवास और अलंकरण हैं। लेकिन यदि युद्ध इसी तरह चलते रहे तो मनुष्य अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाएगा, तो सुख और समृद्धि की प्राप्ति कैसे होगी? युद्ध न केवल आर्थिक, शारीरिक और मानसिक परेशानियां उत्पन्न करता है, बल्कि पर्यावरण को भी दूषित कर धरती को खोखला करता है।

मानव अपने लोभ और अज्ञानता के कारण यह भूल जाता है कि वह अपने सुख के लिए दूसरे मानवों, जीवों और संपूर्ण पर्यावरण को विनाश की ओर धकेल रहा है। इसका दुष्परिणाम संपूर्ण मानव जाति को भुगतना पड़ता है। युद्ध और इसके प्रभावों के कारण मानव समाज भय, ईर्ष्या और अस्थिरता से भरा हुआ महसूस करता है।

आर्थिक प्रभाव
आंकड़ों के अनुसार, भारत अब तक युद्धों में लाखों करोड़ रुपये खर्च कर चुका है, और यह केवल भारत तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में युद्धों पर खरबों रुपये और संसाधनों की बर्बादी हो चुकी है। युद्ध मानव समाज के आर्थिक जीवन पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं।

लोगों की सामान्य आजीविका अत्यधिक प्रभावित होती है, जिससे न केवल वयस्क बल्कि बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जब मनुष्य अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने में संघर्ष कर रहा हो, तो सुख, शांति और संतोष की प्राप्ति कैसे संभव होगी?

मानव समाज, जो एक सार्वभौमिक व्यवस्था में भागीदारी स्वीकार करता है, वहां यह संघर्ष निरर्थक प्रतीत होते हैं। युद्धों के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के कारण समृद्धि सुनिश्चित करना असंभव हो जाता है।

इतिहास इस बात का गवाह है कि हर युद्ध का परिणाम केवल विनाश, गरीबी और शोषण रहा है। जैसे भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के कारण दोनों देशों की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा सैन्य सुरक्षा में चला जाता है, जो केवल अविश्वास और विध्वंस को बढ़ाता है।

युद्ध केवल गरीबी को जन्म देता है और समाज को वर्षों पीछे धकेल देता है, जिससे विकास बाधित होता है।

सामाजिक प्रभाव
युद्ध सामाजिक जीवन के लिए भी अत्यंत कष्टदायक सिद्ध होता है। युद्धों और संघर्षों के कारण लाखों-करोड़ों लोगों को अपना घर और जमीन छोड़कर अन्य स्थानों पर शरण लेनी पड़ती है।

सीरिया युद्ध, यूक्रेन संकट, गाजा संघर्ष, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध—इन सभी के दौरान बड़ी संख्या में लोगों को पलायन करना पड़ा। भारत-पाकिस्तान विभाजन (1947) और बांग्लादेश युद्ध के समय भी लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा था।

युद्ध केवल अस्थिरता और अविश्वास को जन्म देता है। सामाजिक दृष्टि से, युद्ध पूरी तरह से अमानवीय और अस्वीकार्य सिद्ध हुआ है। नस्ल, धर्म, रंग, जाति और वर्ण के आधार पर लड़े गए युद्ध समाज में अन्याय और असमानता को बढ़ावा देते हैं।

समाज में यदि लोग सहजता, सरलता और सौहार्द से जीवन व्यतीत करें तो संघर्ष की कोई आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन जब मनुष्य नासमझी और अहंकार में डूबकर संघर्ष को अपनाता है, तो वह सामाजिक अस्थिरता और असमानता को जन्म देता है।

युद्ध के कारण संसाधनों की मांग बढ़ जाती है, जिससे आर्थिक असमानता भी जन्म लेती है। यह प्रभाव केवल आर्थिक स्तर तक सीमित नहीं रहता, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय स्तर पर भी नुकसान पहुंचाता है।

युद्ध मनोवैज्ञानिक रूप से भी समाज में भय, असुरक्षा और उदासीनता को जन्म देता है, जिससे सामाजिक ताना-बाना कमजोर हो जाता है।

पर्यावरणीय प्रभाव
युद्ध का प्रभाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को भी प्रभावित करता है।

सैन्य युद्धों में बमबारी, परमाणु विस्फोट, और सैन्य गतिविधियां पर्यावरण के लिए अत्यंत विध्वंसकारी सिद्ध होती हैं। उदाहरण के लिए, वियतनाम युद्ध (1961-1975) में अमेरिका ने “एजेंट ऑरेंज” का छिड़काव किया, जिससे लाखों वनस्पतियां नष्ट हुईं और मिट्टी प्रदूषित हो गई।

गल्फ युद्ध (1990-1991) में 700 से अधिक तेल के कुओं में आग लगा दी गई थी, जिससे समुद्री जीवन को गंभीर क्षति पहुंची।

इराक युद्ध (2003-2011) में बमबारी के कारण 141 मिलियन मीट्रिक टन CO2 उत्सर्जित हुई, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हुई।

रूस-यूक्रेन युद्ध (2022-वर्तमान) के कारण भी भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन देखा गया है।

भारत में मणिपुर हिंसा के कारण 60,000 से अधिक लोगों को विस्थापन झेलना पड़ा, साथ ही अवैध लकड़ी कटाई और भू-क्षरण की समस्याएं बढ़ीं।

युद्ध केवल देशों के बीच ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी पर्यावरणीय असंतुलन को जन्म देता है।
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__निष्कर्ष

युद्ध न केवल सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से एक निरर्थक प्रक्रिया है, बल्कि यह दार्शनिक दृष्टिकोण से भी विनाशकारी सिद्ध हुआ है। यह केवल कुछ लोगों की नासमझी और सही दृष्टि के अभाव का परिणाम है, जो अनेक निर्दोष और मासूम लोगों के जीवन को लंबे समय तक गहरे विरोध और भय के अंधकार में धकेल देता है।

इतिहास गवाह है कि आज तक कोई भी युद्ध किसी स्थायी समाधान की ओर नहीं ले गया, बल्कि इसने नए-नए संघर्षों और विवादों को ही जन्म दिया है।

इसका एकमात्र समाधान यही है कि संपूर्ण मानव जाति सही को समझे, सही को जिए, और अपने सुख, शांति, समाधान एवं समृद्धि की मूलभूत आवश्यकताओं व लक्ष्यों को समझदारी, भागीदारी, ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ पूरा करे।

युद्ध का अंत केवल हथियारों से नहीं, बल्कि सही विचारधारा और सह-अस्तित्व की समझ से ही संभव है।

Khushbu Bareth ji

Name: Khushbu Bareth
Age: 22 years
Place: Bhilwara, Rajasthan,India
Education: Bachelor of Arts in Mass Media Communication, University of Mumbai

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