मूल्य में जीना
मूल्य में होना, मूल्य में रहना,
मूल्य में निष्ठा, मूल में उत्सव ।1।
मूल्य ही धारणा, मूल्य में ध्यान,
मूल्य का चिंतन, मूल्य स्वीकृति ।2।
मूल्य अभिव्यक्ति, मूल्य संप्रेषणा,
मूल्य ही प्रेरणा, मूल्य प्रकाशन ।3।
मूल्य अनुशासन, मूल्य व्यवस्था,
मूल्य विवेक, मूल्य संवेग ।4।
मूल्य से चरित्र, मूल्य नैतिकता,
मूल संस्कृति, मूल्य सभ्यता ।5।
मूल्य समाधान, मूल्य व्यवस्था,
मूल्य मानवीय, मूल्य सामाजिक ।6।
मूल्य में अनुभव, मूल्य प्रमाण
मूल्य में जीना, न्याय है जान ।7।
मूल्य में होती, धर्म-सत्य पहचान,
मूल्य निर्वाह, मूल्य मूल्यांकन ।8।
संबंध स्वीकृति, समझदारी जान,
संबंध निर्वाह, ईमानदारी पहचान ।9।
कर्तव्य-दायित्व, जिम्मेदारी जान,
व्यवस्था में जीना, भागीदारी पहचान। 10।
संबंध में मूल्य, मौलिकता तू जान,
मूल्य को जान, मूल्य को मान ।11।
विश्वास-सौजन्यता, संबंध आधार,
ममता-उदारता, माता की पहचान ।12
वात्सल्य-सहजता, पिता में जान,
स्नेह-सम्मान, भाई-मित्र पहचान ।13।
पति-पत्नी संबंध, विश्वास आधार,
स्नेह-प्रेम की, नित्य है धार । 14।
कृतज्ञता-सौम्यता, श्रेष्ठ स्वीकृति
सम्मान-सौहार्द, मानव संस्कृति।15।
गौरव-सरलता, जाग्रति की स्वीकृति,
श्रद्धा-प्रेम, गुरु की पहचानन ।16।
मूल्य ही महिमा, मूल्य ही गरिमा,
मूल्य बिना नहीं, मानव पहचान ।17।
वीरता-वीरता, उदारता-दया
कृपा-करुणा, मानव मूल्य हैं जान ।18।
संबंध में होता, आदान-प्रदान,
मूल्य आदान, मूल्य प्रदान ।19।
संबंध निर्वाह यही है ज्ञान,
साथ में जीना संबंध पहचान ।20।
संबंधों में होता, न्याय में जीना,
न्याय मूल्य में, आंनद अनुभति ।21।
सहअस्तित्व संबंध में मूल्यानुभूति
मानव में यह प्रेम पूर्ण अनुभूति ।22।
सुरेन्द्र पाठक
अध्येता, मध्यस्थ दर्शन - सहस्तित्ववाद
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