भ्रम-निर्भ्रम

अहंकार को टूटते,
अज्ञान में बिखरते,
अस्मिताओं में सिमटते
मान्यताओं में फंसते ।1।

मानव के भ्रमित इतिहास को देखा है...

आस्थाओं को दरकते,
वर्गीयता में मचलते,
भ्रम में मदमस्त चलते,
दंभ का प्रदर्शन करते ।2।
एक दूसरे को छलते,
कपट को व्यक्त करते,
युद्ध का गौरवगान करते,
पाखंड का समर्थन करते ।3।

राक्षस मानव के इतिहास को देखा है...

श्रंगारिकता में आसक्त होते,
शोषण-अपराध में फंसते-धँसते
व्यक्तिवाद में संकुचित होते,
अभाव-अज्ञान में स्वतंत्रता खोते ।4।

मानव पशुता के इतिहास को देखा है...

साम, दाम, दंड, भेद प्रयोग करते,
द्रोह-विद्रोह, हिंसा, राज्य से कुचलते,
दान-दक्षिणा, दरिद्रता, भिक्षा में पुजते,
धर्म-पाखंड में अंहम घोष करते ।5।

यही है भ्रमित मानव की कथा-व्यथा ।
यही है मानव जाति की इतिहास-गाथा ।।

निर्भ्रम होने को पहचान,
सहअस्तित्व में प्रत्यक्ष होता,
भ्रम-मुक्ति का परम ज्ञान,
अज्ञान-अहंकार से निकल ।6।
जीवन अमर ज्ञान को तू जान,
सहअस्तित्व में प्रकट होता ज्ञान
सहअस्तित्व संबंधों में जीना,
है मानव मानवीयता पहचान ।7।

सहअस्तित्व और जीवन दो ध्रुवों,
मध्य मानवीयपूर्ण आचरण जान,
मूल्य, चरित्र, नैतिकता में जीकर,
स्वयं में न्याय ध्रुव की पहचान ।8।

न्याय मानव में अखंडता आयाम,
न्याय ही मानव में श्रम का विश्राम,
न्याय, धर्म, सत्य में जीना जागृति परम,
जाग्रति मानव का यह इतिहास चरम ।9।

सुरेन्द्र पाठक
अध्येता, मध्यस्थ दर्शन - सहस्तित्ववाद


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