परिवार में हम सब व्यवस्था में जीते हैं ।
हर समय हर क्षण हर दिन परस्पर पूरक रहते हैं माता पिता  हमारे हमको यह समझाते ।
सह-अस्तित्व है व्यवस्था नित दिन बताते ।
हर संबंधों का है सह-अस्तित्व प्रयोजन रूप।
नियमों से ही संबंधों में जीना है जो हैं अरूप अरूपात्मक सत्ता में रूपात्मकता नियंत्रित है।
नियमों में ही हर इकाई संतुलित है
न्याय धर्म सत्य ही मानव की जीने की विधि है विवेक ही समाधान व विज्ञान ही समृद्धि है।
इन दोनों के योग में परिवार व्यवस्था प्रमाणित होती है।
समाधान समृद्धि पूर्वक परिवार इकाई सामाजिक रहती है ।
अखंड सामाजिकता ही है ज्ञान का प्रमाण। सार्वभौम शुभ में ही है व्यवस्था नित्य वर्तमान।
                         लेखिका सुनीता पाठक


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