देविका और आंशिका एक ही मोहल्ले में रहते थे। उनके मकान आपस में सटे थे। वे आपस में बहुत अच्छी सहेलियाँ थीं। वे साथ-साथ स्कूल जातीं, स्कूल से लौटकर साथ में ही होमवर्क करतीं, साथ में खेलतीं।

देविका के पिता विदेश में काम करते थे जबकि आंशिका के पिता की बाजार में दुकान थी। इस बार दीपावली में देविका के पिता घर आने वाले थे। देविका इस बात से बहुत खुश थी।

आंशिका ने देविका से पूछा – आज बहुत खुश लग रही हो?
देविका – हाँ, कल पिताजी से फोन पर बात हुई थी। उन्होंने बताया कि वे इस बार दिवाली में घर आएंगे।अंशिका – लेकिन तुम तो हर दूसरे-तीसरे दिन वीडियो कॉल के जरिए उन्हें देख ही लेती हो। तो इतना खुश क्यों हो रही हो?
देविका – अरे, सामने होने की कुछ और ही बात है।
दिवाली में देविका के पिता घर आते हैं। वे देविका के लिए एक कैमरा लेकर आए थे। देविका कैमरे से खूब फोटो खींचती है। देविका अपने पिताजी के साथ समय बिताती है और बाकी समय कैमरे से फोटो खींचती है। वह अपना कैमरा अंशिका को दिखाती है।
अंशिका को कैमरा बहुत पसंद आता है। वह एक दिन उसके लिए कैमरा मांगती है, ताकि वह भी कुछ फोटो खींच सके।
लेकिन देविका कहती है – अभी यह कैमरा नया है। मैं ही इसके बारे में ठीक से नहीं जान पा रही हूँ। एक बार मुझे ठीक से आ जाए, तो मैं तुम्हें दे दूंगी।
अंशिका को लगा कि देविका बहाना बना रही है।
उस दिन से अंशिका देविका से अलग-थलग रहने लगी। उसे लगा कि देविका को उसके विदेशी कैमरे का घमंड हो गया है। एक दिन उसने अपने पिता से कहा – मुझे भी विदेशी कैमरा चाहिए।
पिता ने कहा – अरे, तुम्हें कैमरे की जरूरत क्या है।
अंशिका – बस, मुझे चाहिए। जैसा देविका के पास है। (इसी समय देविका के पिता उनके घर आते हैं)
देविका के पिता – अरे बेटा, ये कैमरे वहाँ इतने सस्ते मिलते नहीं हैं। यहाँ बहुत महंगे हैं। और तुम्हें कैमरे की क्या जरूरत है? जब चाहिए होगा तो देविका से ले लेना। अच्छा, अब मैं चलता हूँ। आज मुझे वापस जाना है। यह कहकर देविका के पिता चले जाते हैं।
अंशिका के पिता – सुना तुमने।
अंशिका – नहीं, मुझे अपना कैमरा चाहिए। पिताजी, आप भी विदेश चले जाओ।
पिताजी – अरे, हमारा काम यहाँ है। भले विदेशी कैमरा खरीदने के लायक पैसे नहीं हैं लेकिन जरूरी सुविधाएं तो हैं ही। अब एक कैमरे के लिए मैं विदेश जाऊँ?
अंशिका – हाँ - हाँ, आप विदेश जाइए और मेरे लिए कैमरा लाइए। इसके बाद अंशिका सच में ही जिद पकड़ लेती है। वह खाना छोड़ देती है और रोने लगती है।
उसके घर के सभी सदस्य उसे समझाने का प्रयास करते हैं लेकिन वह नहीं मानती। इसी बीच देविका को पता चलता है तो वह अंशिका से मिलने आती है।
अंशिका – तुमसे मतलब? मैं कुछ भी करूं, तुम्हें क्या? तुम जाओ अपने कैमरे के साथ खेलो। मेरे पिता भी विदेश जाएंगे और ऐसा ही कैमरा लाएंगे।
देविका – अरे! कैमरे के लिए तुम पिताजी को विदेश भेजोगी? ठीक है, मैं अभी आती हूँ। देविका दौड़कर घर जाती है और अपना कैमरा लेकर आती है। और अंशिका से कहती है – सुनो, तुम ये कैमरा ले लो।
अंशिका – पर ये तो तुम्हारा कैमरा है, मुझे अपना कैमरा चाहिए।
देविका – तुम ये हमेशा के लिए रख लो। पर अपने पिताजी को विदेश मत भेजो। तुम्हें पता नहीं कि पिताजी के दूर होने पर कैसा लगता है। तुम्हें ये कैमरा ज्यादा कीमती लग रहा है। लेकिन तुम्हारे पिताजी तुम्हारे साथ हैं, इसका मूल्य तुम्हें नहीं पता। मुझसे पूछो, अब तीन साल के लिए मैं अपने पिता से नहीं मिलूंगी।
जब तुम अपने पिता के साथ खेलती हो, तुम्हारे पिताजी तुम्हें घुमाने ले जाते हैं, तुम्हें गोद में उठाते हैं तब मुझे अपने पिताजी की कितनी याद आती है तुम्हें नहीं पता। मैं नहीं चाहती कि पिताजी के बिना जैसा मुझे खराब लगता है तुम्हें भी लगे। क्योंकि मैं तुम्हारी सच्ची दोस्त हूँ। इसलिए ये कैमरा तुम रखो लेकिन अपने पिताजी को विदेश मत भेजो।
अंशिका के आँखों में आँसू आ जाते हैं। वह कहती है – मुझे अपनी गलती समझ में आ गई। मैंने न तुम्हारी दोस्ती पहचानी न पिताजी का प्यार। मुझे माफ कर दो। अब मुझे कैमरा नहीं तेरी दोस्ती ही चाहिए।
इसके बाद दोनों सहेलियाँ कैमरे से एक-दूसरे की फोटो खींचती हैं। खेलने चली जाती हैं।

Rajesh Bahuguna ji

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