मानव को पता है क्या अपना आहार -
जीव चेतना से ही क्यों अब भी इतना प्यार!
नियति विधि से नियंत्रण हेतु संयत होते शिकार,
संतुलित है इससे पशु पक्षी का संसार।
रसना के वशीभूत मूक जीवों का संहार?
क्रूर आस्वादन का हिंसक ये व्यापार।
मानवता हो मौन;हो जाए शर्मसार!
भोजन का भाव से जुड़ता है तार,
जैसा हो आहार;वैसा ही हो आचार।
पहचान लें,अब तो अपना उचित आहार।।
प्रकृति में सजे जब इतने सारे उपहार,
फल फूल,शाक अन्न के छाए विविध प्रकार।
पोषण से भरपूर,ताजे ताजे शाकाहार।।
अमृतमयी दुग्ध व संजीवनी रसाहार।
ऋतुनुरूप भोजन,पकवान के बहु प्रकार।।
सुंदर,सरस, सर्वग्राह्य शाकाहार।
वर्जित हो मांसाहार,सजग हो संस्कार।।
चेतना का परिष्कार,जीवहिंसा का बहिष्कार।।
पहचानें निश्चित आहार,स्वीकारें शाकाहार।।
सबसे सुंदर आहार,सर्वोत्तम शाकाहार!!
“सोनाली भारती”
शिक्षिका मध्य विद्यालय बाघमारा,जसीडीह,
देवघर,झारखंड