- जिसे हम दुनियां कहते हैं*
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यह सुन्दर सजावट
जिसे हम दुनियां कहते हैं,
अपनी निश्चित भूमिकाओं में-
हम सब हिल-मिल रहते हैं!
संबंध निश्चित हैं
और हैं सिर्फ़ सात,
खूब ग़ौर करने पर
नज़र में आई बात!
इन भूमिकाओं में जीने की
हमारी अंदरुनी प्यास है
कृतज्ञता,गौरव ममता यही
स्नेह,प्रेम,विश्वास है !
सुख ढूंढते हुए हमने
ठूंस लिए सामान,
संबंधों से हुए दूर और
ढूंढ रहे भगवान!
धरती,धूप,हवा,पानी
हम सबकी संपत्ति है,
समझ कर जीना हो जाए
फिर काहे कोई विपत्ति है!
- सहअस्तित्ववादी प्रस्ताव से,*
- समाधान ही समाधान है,*
- शोषण भूख गरीबी भय का*
- ‘समझ’* *ही एक निदान है!*
अपने-अपने लक्ष्य को लेकर
तहस-नहस है यह दुनियां,
मिलकर जीना लक्ष्य बने तो
रह पाएंगे मुन्नू-मुनियां !
🙏🏻
संदीप, देवघर
०२-१०-२०२३