चौकीदार
मेरे भीतर
हम सभी के भीतर
एक चौकीदार रहता है।
हो सकता है वो सोता हो अभी,
ऐसा हमको लग सकता है,
सोता हो,जागता हो,
पर
मेरे भीतर एक चौकीदार
तो निश्चित ही रहता है।
वो बातें भी करता है।
बताता है,भूख लगी है,प्यास लगी है,
चल थोड़ा घूम आयें,
ये ग़लत कर रहा है,
फ़लाँ सही कर रहा है।
मेरे भीतर एक चौकीदार
रहता है।
कभी वो सामान संग्रह में जुट जाता है
कभी वो लालच कर बैठता है
कभी वो आलसी हो जाता है,
कभी झूट बोल बैठता है।
कभी वो ख़ुद को ही तंग करता है,
कभी वो सब से तंग हो रूठ जाता है।
पर मेरे भीतर एक चौकीदार तो रहता है।
यूँ ही एक दिन
भूत काल की पीड़ाओं में मैं ग्रस्त,त्रस्त
अपने आप को दुखी कर
रो रही थी
सभी को दोष दे रही थी
ये मेरे ही साथ क्यूँ होता है
सोच रही थी...
और वो चौकीदार सतर्क हो गया
पूछा मुझसे,ये क्या सोच रही है? क्यूँ सोच रही है? घटना कब की घट चुकी
अब तक क्यूँ ख़ुद को दुखी कर रही है ?कोस रही हो ?
कब तक ऐसा करोगी ?
भ्रमित,दुखी मैं,
ख़ुद से ही पूछ बैठी,
भई,तुम कौन हो?
चौकीदार बोला,मैं-तुम हूँ...
तुम मैं हो ? कैसे ?
क्यूँ कि मैं तुम्हारे भीतर हूँ,तुम्हारा चौकीदार हूँ।
चौकीदार- ये कैसे?
चौकीदार ऐसे कि मैं तुम में,तुम को,निरंतर देखते रहता हूँ।तुम मैं हो,मैं तुम हूँ,हम एक हैं... मैं तुम्हारी आवाज़ हूँ,आवाज़ देता हूँ,जागते रहो,जागते रहो... मैं तुम्हारी चौकीदार करता हूँ,तुम को सूचित करता हूँ,सही ग़लत,बता सकता हूँ,मैं हमेशा तुमने जगता रहता हूँ... मैं कभी सोता नहीं हूँ।
मैं ही वो हूँ जो तुमको बताता हूँ कि उठ जा तुमने तीन बजे का अलार्म लगाया है,
मैं ही वो हूँ जो बोलता है लाल सिग्नल है रुक जा
मैं ही वो हूँ जो भास - आभास कराता हूँ,
मैं ही वो हूँ,जो सही सीखना समझना करना चाहता हूँ ...
बात तो सही थी,तर्क में दम था ...
ठीक है तुम मेरे भीतर हो,मेरे चौकीदार हो पर तुम चाहते क्या हो?
मैं-तुम-हम ...
हमेशा,ख़ुश रहना चाहता हूँ...
ख़ुश रह कर ख़ुश रखना चाहता हूँ।
रोज़ रात , तृप्त हो सोना चाहता हूँ,
मन से तन से स्वस्थ रहना चाहता हूँ...
मेरी क्या उपयोगिता है समझना चाहता हूँ...
तुम से इसलिए तो लगातार बात करना चाहता हूँ,
कि तुममें तुम तुम को,
ख़ुद में ख़ुद को महसूस कर सको,
मुझमे मुझ को महसूस कर सको
इसलिये मैं तुम में बसता-
तुम को ख़ुद तक पहुँचने का रस्ता हूँ..
तुम मुझे सुनो तो
मैं तुम्हारा चौकीदार हूँ
हमारा अच्छा ही चाहता हूँ...
पर मैं कैसे तुम पे विश्वास करूँ ?
आज नहीं तो कल
इस दुनिया की कल-कल से मुक्त होने
तुमको मुझ पे,ख़ुद पे
विश्वास तो करना ही होगा।
तुम्हें मुझे,ख़ुद को समय देना ही होगा
क्यूँ कि तुम में ही वो बसता है
जो तुमको समझ कर,समझा कर
सुलझा सकता है...
क्यूँ कि तुमने ही वो बसता है
जो तुमको पूरा करता है...
मेरे कुछ और नाम हैं/काम हैं!
क्या मैंने पूछा ?
मुझे सतर्कता सजगता भी कहते हैं
और धीरे धीरे मेरी मुझ से पहचान
इस चौकीदार ने कराई
मैं जब थक गई
टूट गई
ख़ुद को ही पढ़ने का,गढ़ने का हौसला
इस चौकीदार ने मुझे दिया...
कभी लाड़ किया कभी डाँटा
पर मुझे ख़ुद ही जीना सिखाता रहा
मेरे भीतर चौकीदार यूँ बसता रहा
मुझे सही जीना सीखते देख
हौसला देता रहा...
पहले मैं कोई ग़लती कर सकती हूँ
ये स्वीकार ही नहीं होता था,
फिर थोड़ा बदली,
ग़लती करने के बाद समझ आता कि ग़लती तो मेरी थी,
फिर और सुधार हुआ,
ग़लती करते करते समझ आ जाता कि मैं ग़लती कर रही हूँ,
और ये चौकीदार अब पहले ही सूचना देने लगा कि ग़लती होने वाली है ...
फिर ये तय हुआ कि अब ग़लतियाँ और काम करना है,अपने आप को सुरक्षित रखना है...
और ये भी संभव हो रहा है...
मेरा चौकीदार बढ़ियाँ साथ निभा रहा है..
मुझे लगातार सतर्क रहना सिखा रहा है... बताया था ना एक और नाम और काम!
मेरी मुझ से मुलाक़ात अब पल पल रहती है
ख़ुद से ख़ुद के तार जुड़ गए हैं
चौकीदार और मैं-एक हो गए हैं...
संगीत भीतर का सुंदर है,
सब शुभ घट रहा है...
मेरा चौकीदार लगातार जग रहा है...
अभी भी ख़ुद पे काम चल रहा है...
ख़ुशियाँ मेरी मेरे हाथों में हैं
मेरे भीतर में है
ये एहसास समझ आ रहा है
क्रोध,आवेशों,संग्रह,असुराक्षा की अब ज़रूरत नहीं,
तो स्वयं ही निरर्थक पीछे छूटा जा रहा है...
मेरा चौकीदार
अद्भुत है,
यही चमत्कार है,
ये चमत्कार
सुख दे रहा है
ऊर्जा दे रहा है ...
मेरी मुझ से मुलाक़ात अब पल पल रहती है
ख़ुद से ख़ुद के तार जुड़ गए हैं
चौकीदार और मैं-एक हो गए हैं...
संगीत भीतर का सुंदर है,
सब शुभ घट रहा है...
मेरा चौकीदार मज़ेदार है...
लक्ष्य सही हो
निष्ठा हो,नियम पे चलना आसान करते जा रहा है...
मुझको अध्ययन,मेरा ही,कराते जा रहा है,
मेरा संबंध ख़ुद से सुंदर-सहज होते जा रहा है...
मेरा चौकीदार “सतर्क” होते जा रहा है...
हम सब में है एक चौकिदार,हम को जगाना चाह रहा है ...
नीति
29th September 2019