शर्मिला घर का काम खत्म करके जैसे ही नाश्ता करने बैठी, फ़ोन बजने लगा. मोबाइल स्क्रीन पर अभिषेक की कक्षा अध्यापिका का नाम था. फ़ोन उठाकर जैसे ही नमस्ते का आदान-प्रदान हुआ, अध्यापिकाजी ने पूछा, “अभिषेक की तबियत कैसी है ? ” उन्होंने स्कूल टूर का फीस भी जमा करने के लिए कहा, इस बात के साथ कि फीस भेजने की निर्धारित तारीख से समय ऊपर हो चुका है। शर्मिला का तो जैसे सांस ही अटक गया! जैसे-तैसे बात करके, फीस जल्दी भेजने का वादा किया और अभिषेक की तबियत थोड़ा ठीक है बोलकर फ़ोन रखा ।
शर्मिला को समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है. बात यह थी कि अभिषेक का स्कूल के तरफ से स्कूल टूर का प्रोग्राम था लेकिन उसका का पढ़ाई का दवाब, घर का बढ़ता खर्च, महंगाई और बाकी कुछ कारण से उसको स्कूल टूर भेजने का मन नहीं था. लेकिन अभिषेक का व्यवहार इन दिनों कुछ बदला-बदला सा था; घर मे चुप-चुप रहता था, जैसे कहीं खोया हुआ है, पढ़ने में भी उसका मन नहीं लगता था । ये सारे परिस्थिति को देखकर उसने और उसके पति, मनोहर ने, अभिषेक को टूर भेजने का निर्णय लिया था। स्कूल टूर की फ़ीस पाँच हजार उसने पिछले हफ्ते ही अभिषेक के हाथ भेज दिया था और अभिषेक आज स्कूल के टाइम पर ही स्कूल के लिए घर से निकला था. अध्यापिकाजी से यह भी पता चला कि पिछले दस दिनों में अभिषेक तीसरी बार स्कूल में अनुपस्थित है, जब कि घर से स्कूल के समय मे रोज़ जा रहा है ।
अब शर्मिला का दिमाग घूमने लगा; मन मैं अलग-अलग शंका आने लगीं की अभिषेक का इन दिनों पढ़ाई में भी मन नहीं लग रहा है, घर मे अनमना सा रहता है, खेलने भी नही जा रहा बाहर; अब वो आठवीं कक्षा मैं आ गया है, नाजुक उम्र है, कहीं बुरी संगत में तो नही पड गया? क्लास में किसी के साथ झगड़ा तो नही हो गया? परीक्षा में
मार्क कम आये क्या? कुछ और बात है क्या? जितना सोचती उतना ही उलझ जाती; माथे पर पसीना चुहचुहाने लगा ।

घबराहट में अपने पति को ऑफिस में फ़ोन लगाया और पूरी बात बताई। मनोहर सुनकर आग-बबूला हो गया , गुस्सा से लाल-पीला होकर कहने लगा सब तुम्हारी वजह से है , तुम्हारे ही लाड़ प्यार के कारण बिगड़ा है, आने दो घर अभिषेक को, आज उसकी वो खबर लूंगा कि आगे से ऎसी हिम्मत ही नही करेगा!
अब शर्मिला ने मामला और बिगड़ता देख, पहले खुद ही खुद को कहा की मुझे शायद आवेशित न होकर ठीक से सोचने की जरूरत है. ऐसे तो बात नही चलेगा और काम भी नही बनेगा तब थोड़ा भाव को संयत करके पति से कही, “आप ऑफिस से घर आओ; हम साथ मैं बात करके मामले को सुलझाते हैं. जल्दीबाजी में काम बिगड़ जाएगा , आराम से सोचते हैं , ये कह कर फ़ोन रखा. आजकल अखबार-न्यूज़ चैनल में इतना कुछ दिखाते हैं बच्चों के बारे में. अभिषेक कहीं फँस गया है, शायद. मुझे अभिषेक की चिंता हो रही है ।
मनोहर को आफिस मैं कुछ जरूरी काम था. बोला, “ठीक है, शाम को बात करते हैं” बोल कर फ़ोन रख दिया ।
ठीक स्कूल छुट्टी होने के समय अभिषेक रोज के जैसे घर आया ।
शर्मिला पूछी खाना डाल दूं बेटा ।
अभिषेक ने कहा नही मम्मा तबियत थोड़ा ठीक नही है , खाना खाने का बिल्कुल भी मन नही है ।
अब शर्मिला धीरे से पूछी की अध्यापिका का फ़ोन आया था ,स्कूल टूर का फीस के बारे में पूछ रही थी , आपने दिया नही क्या ? अभिषेक पहले थोड़ा सकपकाया फिर इधर उधर देखते हुए जवाब दिया कि हां मम्मा में आपको बताने ही वाला था , फीस मुझसे खो गया है , सॉरी आगे से ध्यान रखूंगा । शर्मिला ने पूछा , अब स्कूल टूर का कैसे करेंगे ? अभिषेक ने कहा रहने दो अब मन भी नही है , ये बोल कर अभिषेक अपना कमरे में चला गया ।
अब शर्मिला और सोच में पड़ गयी , अब मामला पैसे का नही उसका सोचने से कहीं ज्यादा गंभीर था ,अभिषेक बहुत सफाई से सॉरी बोल के अपना बात बता भी दिया और बहुत सफाई से गलती छुपा भी दिया, उसका हावभाव से साफ पता चल रहा था कि वो झूठ बोल रहा है । अब वह क्या करे , कैसे ठीक करे , अभिषेक स्कूल न जाने वाली बात भी छुपा गया लेकिन शर्मिला समझ गयी थी अब उसको ये सब पूछने का कोई अर्थ नही है , वो फिर से झूठ बोलेगा ।
अपना सोच के उधेड़बुन में थी की ,
अचानक शर्मिला को अपना बचपन का कोई बात याद आया और विचारों को जैसे एक दिशा मिल गया चेहरे पर सुबह से बारह बज रहा था अब थोड़ा राहत लग रहा था ।

अब वो खाना ले कर अभिषेक के रूम में गयी , लाड़ प्यार , मनुहार से थोड़ा खाना खिलाया और बात करते करते मुस्कुराने लगी । अभिषेक पूछा मम्मा क्या हुआ , शर्मिला ने कहा मेरे बचपन का एक घटना याद आ गया ।

अभिषेक ने कहा मुझे भी बताओ ना मम्मा ।
शर्मिला ने कहा जब मैं तीसरी क्लास में थी तो एक दिन अपने मम्मा के साथ बाजार गयी थी , बाजार मे बहुत सुंदर पेंसिल बॉक्स दिखा , मन ललच गया और जिद करने लगी , मम्मा ने यह कहकर नही दिलाया कि अभी पिछले महीने ही दिलाई हूँ , अभी जरूरत नही है । मैने जैसे तैसे अपना मन को समझा लिया ।
अगले दिन जब मैं स्कूल गयी तो मैं ये क्या देख रही हूँ  ! मेरी सहेली माही के पास वही बाजार वाली पेंसिल बॉक्स था अब मेरा खुद पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो रहा था , दिमाग मे जैसे पेंसिल बॉक्स के अलावा कुछ और समझ ही नही आ रहा था, जैसे ही माही लंच के लिए गई , मैंने पेंसिल बॉक्स उठाकर अपना बैग मैं धीरे से रख लिया , मन मैं थोड़ा डर भी था और पेंसिल बॉक्स मेरे पास है इस बात का खुशी भी ।
लेकिन मेरी खुशी पर तब पानी पड़ गया जब दूसरे दिन अदिति ने मुझे अलग से बताया कि उसने मुझे चोरी करते हुए देख लिया है ,
अब अदिति मुझे छोटी छोटी बात पर iपरेशान करने लगी और धमकी देने लगी ,ब्लैकमेल भी करने लगी की मेरा ये काम कर दो नही तो अध्यापिकाजी को बता दूंगी , ये सामान दो नही तो माही को बता दूँगी । अब मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गया , कैसे करू , क्या करूँ , ये सोचने लगी , मैं हर समय एक डर के साथ जीने लगी थी ।
जब कोई रास्ता नही सुझा तो एक दिन हिम्मत करके अपने मम्मा को बता दी । मम्मा ने माही की मम्मा से बात करके पेंसिल बॉक्स वापस करवा दी , इस तरह से समस्या से छुटकारा मिला ।
अभिषेक मम्मा का कहानी सुनते हुए अपने आपको जोड़ के देख रहा था कि इन दिनों उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है , उसको मोबाइल फ़ोन में गेम खेलना बहुत पसंद है , मम्मी पापा पहले तो कभी कभी दे देते थे लेकिन जब से आठवीं मैं आया है तब से हर वक़्त पढ़ाई करो बोलते रहते हैं । ये बात जब उसने अपने दोस्त के घर मे शेयर कर रहा था तोह दोस्त के भाई ने कहा उसके पास एक पुराना मोबाइल है वो पांच हजार में दे सकता है । जब मम्मा ने उतना पैसा स्कूल टूर के लिए दिया तो उसने स्कूल टूर का फीस का पैसा नही जमा करके उस पैसे से अपने दोस्त के भाई से एक सेकंड हैंड मोबाइल ले लिया था और स्कूल न जा कर गार्डन में मोबाइल में गेम खेलता था , अपने उत्सुकता वश अभिषेक ने शर्मिला को पूछा मम्मा , नानी मा ने आपको डांटा नही ?
शर्मिला ने संजीदगी और गंभीरता के साथ कहा ,
उम्म्म थोड़ा सा डांटा , थोड़ा नाराज़ हुई और प्यार से समझाया भी पर ये डांट उन दिन रात की परेशानी से अच्छी थी जो वो मानसिक रूप से झेल रही थी , दूसरा उसे अपने मम्मा पर भरोसा हुआ कि मम्मा से सब कुछ शेयर किया जा सकता है , मम्मा पापा हमारे भले के लिए ही सोचते हैं ।
अब अभिषेक ने भी अपना बात शेयर करने की मन ही मन तैयारी कर ली थी , इस बात के साथ कि वो मम्मा से पूरा बात शेयर करेगा ,पढ़ाई में मन लगाएगा और उनको कहेगा कि मुझे एक नियमित समय में थोड़ा समय मोबाइल में गेम खेलने को दे दिया करो ।
अभिषेक को मम्मा की बात से ये समझ मे आ रहा था कि उसने भी लालच में आ कर मोबाइल ले तो लिया था लेकिन अब उसको अपने मन मे अच्छा नही लगता था कि उसने ,मम्मा पापा से झुठ बोला , और मम्मा पापा को पता चलने से क्या होगा ये डर भी लगने लगा था । पढ़ाई में भी असर आने लगा था , ये सब मानसिक भय और दबाब से अब वो अंदर ही अंदर थकने लगा था । मम्मा से पूरा बात करना है इस निर्णय के साथ अभिषेक खुद को बहुत हल्का और मजबूत महसूस कर रहा था । उसने कहा मम्मा मुझे आपसे बहुत बात करनी है , और बहुत कुछ बतानी है । शर्मिला सुनकर खुश हुई कि अभिषेक का विश्वास अब उस पर बढ़ने लगा है ।

ये सब बातचीत के बीच मे मनोहर घर आ गया था और मम्मा बेटा का संवाद सुन कर आश्वस्त हो रहा था कि शर्मिला ने अच्छे सूझबूझ से इतना नाजुक परिस्थिति को ठीक होने की और ले गई । अब मनोहर को ये भी समझ आ रहा था कि अभिषेक के साथ खुल कर संवाद न करना , मोबाइल क्यों नही दे रहे हैं ये बताना , उसको अपने मन की बात कहने का अवसर न देना शायद समस्या का एक महत्वपूर्ण कारण है। बच्चों से घर मे संवाद का वातावरण रहता है तो बच्चों के समस्या में बच्चे खुल कर अपनी बात बता पाते हैं । सब साथ मे बैठकर सूझबूझ , सही संवाद और सही दिशा से समस्या के समाधान का प्रथम चरण की और अग्रसर हो सकते हैं , और धीरे धीरे समाधान पा भी सकते हैं।

अभ्यास के लिये कुछ विंदु ।

अभिषेक अपने मम्मा से बात कैसे शेयर करेगा और बात सुनकर शर्मिला का क्या भाव , जवाब रहेगा ये संवाद के रूप में लिखना है ।
समाधान का प्रथम चरण से समाधान की और बढ़ने के लिए , शर्मिला और मनोहर ने इस घटना के बाद क्या क्रम सोचे होंगे ?
कहानी का शीर्षक कितना उपयुक्त और सटीक है , क्या कोई और शीर्षक रख सकते हैं ? ( इस पर चर्चा से बच्चे सटीक शीर्षक सोचने का अभ्यास कर सकते हैं ) ।
अपने जिंदगी मैं घटने वाली एक घटना को भाषा और भाव के सुक्ष्म उतार चढ़ाव के साथ लिखना ।
ये समस्या सिर्फ शर्मिला और अभिषेक का है या कम ज्यादा सारे जगह पर है , इसको हम कितना देख पाते हैं , इसको निरीक्षण , परीक्षण में देखने का अभ्यास ।

Shalu Agarwal ji
Medhasvi Kids Shiksha Sanskar Pre Primary School
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