किरण और रवि दोनों बहुत बहुत समझदार पति पत्नी हैं , दोनों मिल कर एक नर्सिंग होम चलाते हैं , समाज में प्रतिष्ठित हैं और बहुत विचारशील हैं , सामाजिक परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील हैं । दोनों का एक छोटा सा प्यारा सा बच्चा भी है ।
पति पत्नी दोनों अपने लक्ष्य के प्रति और काम के प्रति समर्पित हैं , इतना ज्यादा की अब दोनों का एक दूसरे के साथ संवाद के लिए बहुत कम वक्त मिलता है ।
किरण और रवि ने इसके लिए एक तरीका निकाला कि कभी कभी दोनों साथ में घर से कहीं बाहर जाते , कुछ खाने या टहलने और मोबाइल बंद कर के एक दूसरे से अच्छे से बात करने का प्रयास करते ।
उनको लगता था कि मोबाइल से ध्यान इधर उधर हो जाता है जो कि बात करने में व्यवधान करता है ।
बात कुछ हद तक तो सही है लेकिन क्या सिर्फ मोबाइल बंद होने से सार्थक बात हो पाएगी ?
क्या मोबाइल ही संवाद में एक मात्र समस्या है ?
क्या बात करें और कैसे बात करें कि दूसरा सुनेगा ? क्या ये ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है ।
सुनना सिर्फ यांत्रिक क्रिया है या सुनने का भी स्तर होता है , कैसे बोले और कैसे सुने कि बोलने वाला भी तृप्त हो जाए और सुनने वाला भी ।
बोलने सुनने में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि बात काम कि हो , किसका काम का ?
जो बोल रहा है उसका या जो सुन रहा है उसका ?
हम हमेशा अपना धुन में वही बात करते रहते हैं जो हमें काम का लगता है , कैसे ये दूसरे के लिए भी काम का बात हो , उसके लिए हमें बोलने और सुनने वाले के बीच सेतु बनाना पड़ेगा , और दूसरे के काम का क्रम से अपना काम का क्रम को बहुत बारीकी से सजाना पड़ेगा ।
जब हम इस क्रम से चीजों को देख पाते हैं तो संवाद सार्थक और तृप्ति दायक होता है , मोबाइल हटाने से बातचीत का अवसर जरूर मिलता है लेकिन ये समस्या का पूर्ण समाधान नहीं है , सार्थक संवाद करना निश्चित रूप से एक कला है ।
Medhasvi Kids Shiksha Sanskar Pre Primary School
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