निश्चित दिनचर्या
हम जब अपने चारो देखते हैं तो समझ पाते हैं की प्रकृति मे प्रत्येक ईकाइ का आचरण निश्चित है .जैसे नदी का ढाल की और बहना,पेड पौधे की लम्बाई, ऊचाई निस्चित होना ,निश्चित अवधि के बाद ऋतुओ का बदलना ,सुर्य का उदय और अस्त होना ,दिन रात होना ये सब का क्रिया की अवधि निस्चित है .ये सब का आचरण निश्चित है .मानव भी स्वयम से और एक दूसरे से निश्चित आचरण का अपेक्षा रखता हे ,दिनचर्या उसका एक भाग है . हमारा दिनचर्या व्यवस्थित हुये बिना हमारा चाहना, सोचना, बोलना ,करना और फल परिणाम मे एक सुत्रता नही हो सकती . हम कही आवश्यकता से अधिक समय दे देते हैं कही आवश्यकता से कम .समय का संतुलन ना कर पाना ही समस्या है .
दिन चर्या व्यवस्तित होने से हमारी जीवन शैली व्यवस्तित होती है .हम अपने प्रति निश्चित होते हैं और दुसरा हमारे प्रति आस्व्स्स्थ होते हैं .अपने दायित्व कर्तव्य का निर्वाह कर पाते हैं . सब का सहयोग कर पाते हैं .और उसके बाद भी हमारे पास पर्याप्त समय रह्ता है कुछ नया सीखने समझने के लये .
व्यवस्तित दिनचर्या मानव मे निश्चित आचरण का एक प्रमुख सोपान हे . दिनचर्या व्यवस्तित करने से पहले हम ये देख ले कि दिनचर्या शब्द से हमारा आशय क्या है ? एक दिन व्यवस्तित हो जाये या पूरा जीवन शरीर यात्रा .प्रत्येक मानव सफल होना चाहते हैं . मानव जीवन मे सफलता बहुआयामी है.निश्चित रूप से सारे आयाम मे सफल होने के लिये दिनचर्या . आइये देखे कि हम चाहते क्या हैं ,किन किन आयाम मे हम सफलता पाना चाहते हैं.
हम खुश होना चाहते हैं .
हम समझना चाहते हैं .
सब के साथ खुशहाली पूर्वक जीना चाह्ते हैं .
शरीर स्वस्थता चाहते हैं.
हूनर सिखना चाहते हैं .
परिवार , विद्यालय ,ग्राम ,समाज मे भागिदारी करना चाह्ते हैं .
आयु व दायित्व कर्तव्य के अनुसार दिनचर्या अलग अलग निर्धारीत होती है .शिशु, वाल्यकाल, विद्यार्थी,युवा, माताजी ,पिताजी, ग्रुहीणी, अध्यापक, दादाजी दादीजी, नाना जी ,नानीजी का उम्र और दयित्व कर्तव्य अनुसार दिनचर्या अलग अलग होता है. बाल्य काल मे दिनचर्या सम्बोधन ,सहयोग, आज्ञपालन ,अनुकरण अनुसरण पुर्वक होता हे और अपना आवश्यकता की वस्तु का सामन्य सदुपयोग समझने सीखने से होता है .विद्यार्थी जीवन किशोर अवस्था मे निश्चित दिनचर्या अति आवश्यक है .इस उम्र मे खेल ,अध्ययन ,साहीत्यीक ,सास्क्रुतीक, सामन्यकान्क्ष का उत्पादन सिखना,परिवार मे सहयोग ,सेवा के लिये पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है .
व्यवस्तित दिनचर्या से हम सब के लिये समय सुनिश्चित कर पाते हैं. समय तालिका के बाद उसको द्रुढता और निश्ठा के साथ पालन करने की आवश्यकता है .विद्यार्थी का जीवन निश्ठा पूर्वक अभ्यास क्रम मे सफल होता है .
हमारे निश्चित दिनचर्या के आधार पर धीरेधीरे फल परिणाम के रुप मे
शरीर पुश्ट होता है .शारीरीक कार्य समय पर होते हैं .जैसे समय पर सोना ,उठ्ना ,शौच जाना,दांत साफ करना ,नहाना,भोजन करना,व्यायाम करना , विश्राम करना आदि .... शरीर का जैविक घडी नियमित होता है .
शरीर मे रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है .
खेलने,कार्य करने क्षमता उत्तरोत्तर वृधि होती है .
लिखना, पढना, समझना,सोचने मै गति बढती है .
परिवार,ग्राम , विद्यालय मे कर्तव्य निर्वाह कर पाते हैं .
हमारे द्वारा दुसरो को दिये गये आश्वासन की समय पर पूर्ति कर पाते हैं .वचन पालन व समय पालन .
निस्चित दिनचर्या के अभ्यास के क्रम मे हम उम्र के प्रत्येक सोपान मे सफलता के साथ लक्ष्य की और बढ्ते हैं .शरीर यात्रा के हर पडाव मे अपना निश्चित दायित्व और कर्तव्य को खूशहाली और शरीर स्वस्थता के साथ निर्वाह कर पाते हैं .अस्तित्व मे प्रत्येक चीज़ नियमीत और व्यवस्तित और निस्चित आचरण के साथ है .मानव इसको समझता है तो स्वयम के लिये निश्चित और व्यवस्तित दिनचर्या बना पाता है और निश्चित आचरण के साथ जी पाता है .उपलब्धि के रुप मे स्वयम का स्वयम से अपेक्षा ,परिवार का अपेक्षा और समाज का अपेक्षा को पुरा कर पाने मे समर्थ होता हे .
निश्चित दिनचर्या
निश्चित दिनचर्या से हम क्या समझते हैं ?
_दिनचर्या व्यवस्तित होने से हमारा जीवन शैली पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
दिनचर्या शब्द से हमारा क्या आशय है ?
बाल्यकाल में दिनचर्या कैसे होगा ?
विद्यार्थी जीवन मे दिनचर्या कैसे होगा ?
निश्चित दिनचर्या का क्या फल परिणाम है ?
आप का अपना दिनचर्या कैसा है और आप उसमें क्या क्या सुधार की अपेक्षा रखते हैं ?
अपना उम्र अनुसार दिनचर्या का एक दिन का समय सारणी बनाइये ।
Medhasvi Kids Shiksha Sanskar Pre Primary School