अथातो सर्वशुभाकांक्षा ।

अबकी दीवाली ...कुछ भी नहीं किया,
कुछ करने का मन ही नहीं किया।
मेवा मिठाई, नए कपड़े, रंगीन रोशनी,
विविध व्यंजन सब कुछ .....
इतना और निरंतर उपलब्ध है कि
अब किसी अवसर - किसी उत्सव की
आवश्यकता ही नहीं रही, भोग के लिए ।

सजे संवरे, सामानों से भरे घरों में
सह भोग मात्र से अब दिल नहीं भरता ।
वस्तु व्यवहार मात्र अब पर्याप्त नहीं पड़ता ।
दिवाली तथा नव वर्ष के मैसेज फॉरवर्ड करने का,
भी अब मन नहीं करता ।
सिर्फ होंठ हिलाकर शुभकामना देने का,
अब औचित्य नहीं दिखता।
सजी धजी फोटुएं सोशल मीडिया पर,
अपलोड करने से अब जी नहीं भरता ।

इस भोग-रोग, हर्ष-शोक के खेल से मन उकता गया है ।
अनर्गल इस संसार की रीत से बेपरवाह हो गया है।

उत्कंठा उठती उर में अब गहरे संबंधों की,
संबोधन मात्र से अब दिल नहीं भरता ।

संबंधों में भी सिर्फ साथ में,
भोग विलास के कार्यक्रम न बनें,
अब सह अस्तित्व, सम्मिलित अभिव्यक्ति की प्यास है ।

मन करता है कि अब ऐसे दोस्त, ऐसे रिश्तेदार हों,
जो बैठें, बातें करें कुछ ऐसी और कुछ ऐसे कि,
वो हमें और हम उन्हें कुछ और बेहतर करें, निखार दें,
कुछ हम सज जाए , कुछ उन्हें संवार दें ।

मन करता है अब कि,
रोशनी मेरे दिए की, उनकी लौ से जुड़ के जाए ।
हमारी अभिव्यक्तियों में हम एक हो जाएं।
हम एक हो जाएं ।

-शालिनी
14/11/2023

Shalini Janak ji

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