बहुत डरी हुई थी मैं,टूटी हुई भी,हर तरफ़ दरार ही दरार,अधूरापन ज़िंदगी के हर पल में था,पीडा को पालती पोसती थी,अपनी कल्पनाओं को खूब दौड़ाती रहती थी। चैन नहीं था। ऐसे में कोई भी कुछ कहता कि शिव मंदिर में शिव जी को उड़द दाल लगाओ,अपने वज़न का कोयला बहाओ,कुछ भी करने कहते मैं तैयार रहती थी कि कहीं से तो थोड़ा सुकून मिले,सुख मिले।कितने ही दरवाज़े खटखटा रही थी। पूजा पाठ,आस्था,भय,प्रलोभन सब हावी रहते थे।
इस खोज ने मुझे राजन महाराज जी तक पहुँचा दिया। उन्होंने मुझे देखा और बोले,”डर के जीना छोड़ दो। क्या तुम डर के जीने के लिए पैदा हुई हो ?”
भीतर मेरा जैसे चीख उठा। महाराज जी मेरे ससुर जी से बहुत परेशान हूँ,बहुत डर लगता है उनसे,मैंने कहा।
वो हंस के बोले,”डरो मत जो बंदूक चलता है वो ख़ुद हिला हुआ रहता है। वो तो ख़ुद बिचारे हैं। तुम चिंता मत करो,आख़िरकार तो उनको तुम्हारे आगे सरेंडर करना ही होगा। नीति हो तुम भई ।” ठहाका मार दिए। बाद में पता लगा कि ये उनका सिग्नेचर ठहाका था।
मेरे ही किसी प्रश्न पे वो बोले कि कल आओ,फलाँ जगह,मेरे गुरु जी आने वाले हैं,उनसे मिलो आ कर। तुम्हारा रास्ता जीवन विद्या ही है।
मैं इतने दुख में मरती क्या ना करती दूसरे दिन मैं पहुँच गई। वहाँ राजन महाराज जी के साथ थे श्री ए नागराज बाबा जी,और बाबा जी से और उनके लिखे सह-अस्तित्वादी दर्शन से महाराज जी ही थे जिन्होंने हम कई लोगों को जोड़ा।
महाराज जी उस जमाने के ग्रेजुएट यानी स्नातक थे,दार्शनिक किताबों को पढ़ने का उनको बहुत शौक था,वो विश्व स्तर पे होने वाले हर वाक़िये से वाक़िफ़ रहते थे।
जीवन विद्या के शिविर बहुत ही सरल तरीक़े से,examples के साथ वो लेते थे।
नंदनी उनसे मिलने जाने से पहले उनसे पूछो महाराज जी सड़क कैसी है उनका उत्तर होता टॉप ओ टॉप है। और वहाँ सड़क नहीं होती थी। उनका मजाक करने का तरीका अलग ही होता था।
वो हम सभी के बाइंडर होते थे। तभी तो 2000 में संस्थान खुलने से पहले से ही उन्होंने अपना होम वर्क करना शुरू कर दिया था। बाबा जी महाराज जी को मुखिया कहते थे। और वो मुखिया थे भी। उन्होंने सभी को जोड़ कर रखा और पता नहीं कब कैसे अभ्युदय संस्थान खुल गया। और अगले वर्ष 2025 में संस्थान को खुले 25 साल भी हो जायेंगे। महाराज जी ने हम सभी को लक्ष्य पकड़ा दिया,सुंदर बंधन में पिरोया,सम्भाला और हमारी यात्रा में हमारे साथ रहे। वो कहते थे कि लोग बहुत दुखी है और हम सभी को उस मुकाम में पहुंचना है जहाँ से हम सभी को फिर वो लक्ष्य पकड़ा कर सुख की ओर गतित करें।
ये बड़े योजनाबद्ध तरीक़े से होता गया।हम कई अपरिचित लोगों को महाराज जी ने परिवार स्वरूप जोड़ दिया। पहले तो हम सभी को पूज्य श्री ए नागराज जी बाबा जी,माता जी,अंबा दीदी और परिवार से,बाबा जी द्वारा वर्षों की तपस्या से समझ आया,मानव केंद्रित सह अस्तित्ववाद ( human centric philosophy of coexistence ) से जोड़ा और फिर अंजनी भाई जी-मीना भाभी जी ( रणजीत भाई जी के बड़े भाई भाभीजी ) हम सभी का मायका बने,बी आर भाई जी अंचल भाभी जी,धीरेंद्र भाई जी -अनीता शाह ब जी,संकेत भाई जी-शुभ्रा भाभी जी,सोम भाई जी-निताशा ब जी,मनजीत भाई जी-डॉली भाभी जी ( एक और मायका) आदि कई कई परिवार जुड़ते गए।
इस तरह महाराज जी ने बाबा जी की कल्पना को अभ्युदय संस्थान स्थापित कर साकार किया। वहाँ एक कमरे में रह कर,बड़ी ऊर्जा के साथ इस संस्थान को महाराज जी ने अथाह परिश्रम कर शुरू किया। आज अभ्युदय संस्थान देश विदेश में मानीय शोध संस्थान,चेतना विकास मूल्य शिक्षा संस्थान के रूप में भी ख्यात है। बाबा जी हर तीन माह में यहाँ आते रहे और महाराज जी ने काफ़ी लंबा समय यहाँ गुज़ारा।
महाराज जी द्वारा लिए गए जीवन विद्या शिविर यू ट्यूब में उपलब्ध हैं। औरी आश्रम में सभी को इक्कट्ठा कर ले गए जहाँ बाबा जी ने मध्यस्थ दर्शन की प्रस्तुति दी और कई जिज्ञासाओं का उत्तर दिया। महाराज जी के इस प्रयास को अब भी यू ट्यूब में देख सकते हैं।
बाबा जी के जीवन पे एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनवानी थी उन्हें। वो बाबा जी के गाँव हसन ज़िला,मैसूर तक गए और ख़ुद पूरा देख आए,डॉक्यूमेंट्री बनवाई और सत्यम,VIP रोड में इसको दिखाया भी।
ऐसे मध्यस्थ दर्शन के प्रचार प्रसार लोगों को जोड़ने,उत्साहित करने वो लगे रहते थे।
महाराज जी को कुछ भी बीमारी होती वो फ़ोन करवाते। अरे बाबा से उनका वाक्य शुरू होता था। स्वस्थ होते तो कृतज्ञ होना नहीं भूलते। मैं बीमार होती या कोई भी कहीं भी सुख दुख में होता वे पहुँच जाते।
जितने भी उतार चढ़ाव उन्होंने देखे पर उनके मुँह से कभी किसी की बुराई नहीं सुनी,कोई शिकवा गिला नहीं था उनको कभी।
कभी मैं ही बोल देती मेरे श्रीमानजी को ले कर तो हँसते हुए कहते अरे बाबा नीति उसको बख्श दे रे साधु आदमी है। मैं पूछती पता नहीं आपको कहाँ से साधु दिखते हैं,और वो हँसने लगते।
पता नहीं कितने सालों से मेरे यहाँ दिवाली पे पूजा करने आते थे। मेरे यहाँ ज्ञान पूजा होती थी और बाद में बच्चों की इच्छा से हवन पूजन भी होने लगा। शुरू में एक दो बार मैंने पूछा महाराज जी मुहरत का समय क्या है ? वो कहते जब भी तुम पवित्र मन से करो वही शुभ मुहरत है। फिर मैंने दिवाली पे पूजा का मुहरत पूछा ही नहीं कभी। जब से दिवाली पे आते,पहले भोजन करते। उनके साथ उनके सहयोगी उभय राम भाईजी होते ही थे। कुछ 4-5 साल से महाराज जी की बेटी कल्याणी दीदी भी आने लगी थीं। भोजन के बाद पूजन और फिर रणजीत भैया जी के यहाँ जाते थे। ये क्रम सालों से चल रहा था।
नियति नियम पूर्वक है।
दिवाली के कुछ 10-15 दिन पहले उभयराम भैया जी से फ़ोन पर बात कर दिवाली हम 31st को ही मनायेंगे तय किया। तब भैया जी ने मुझे बताया कि रणजीत भैया के यहाँ 1st को मनायेंगे,तो हम आप के यहाँ 31st को आ जायेंगे। कुछ 7 दिन पहले फिर मैंने फ़ोन लगा कर उभय राम भैया जी से कहा कि महाराज जी से बोलिए कि इस बार मानव व्यवहार दर्शन के पहले अध्याय से जागृत मानव में,से,के लिए ईश्वर कार्य व्यवहार में नियम के रूप में वाले पूरे पैराग्राफ पे बोलें। छोटी सी पूजा बच्चों के मन को रखने हो जाये,आस्था भी बनी रहे और अच्छी बात भी हो जाये। भैया जी बोले हाँ दीदी ये सही रहेगा,हम ज्ञान पूजा करेंगे। तो ये तय हो गया। मेरे परिवार में महाराज जी को ले कर पहले से स्वीकृति थी तो उनकी अच्छी बातें सभी को स्वीकार होती थीं।
दिवाली के एक दिन पहले फिर भैया जी से बात हुई। फिर से पूरे प्रोग्राम को हमने तय किया। परिवर्तन ये था कि अब रणजीत भैया जी के यहाँ भी पूजा 31st की ही थी।
दिवाली के दिन निर्धारित समय पर महाराज जी,कल्याणी दीदी और उभयराम भैया जी का आगमन हुआ। मैं उनका स्वागत करने पहुँची तब तक महाराज जी लोग डाइनिंग टेबल में कुर्सियों पर अपना स्थान ले चुके थे। इस बार महाराज जी एक दम सादा सफ़ेद धोती कुर्ता पहने हुए थे। वर्ना उनको रंग-बी-रंगे कुर्ते पहनना अच्छा लगता था।
बहरहाल मैं गई प्रणाम की और महाराज जी के बाजू में बैठ गई। वो मुझे देखते ही बोले नीति तुम कुछ की हो क्या चेहरे पे? नहीं महाराज जी कुछ नहीं की हूँ,मैंने कहा। नहीं,कुछ तो अलग है तुम्हारे चेहरे पे। महाराज जी अब मैं एक दम संतुष्ट और तृप्त हूँ। बस अब कुछ करना नहीं,ना कुछ चाहिए,ना कुछ पाना है,सब इच्छायें पूरी हो गईं। खूब ध्यान से वो मुझे देख रहे थे,आदतन मेरी आँखों में मेरे हाव भाव को पढ़ते हुए,मेरे हाथों में हाथ लिए वो बोले कुछ तो अलग है इस बार नीति। मैं मुस्कुरा दी और इतने में सभी की थालियाँ बहु बिटिया ने परोस दीं। हंसते बात करते वो भोजन करते कर रहे।थोड़ा कम खाये,पूछने पर बोले इस बार रणजीत बोला है उसके यहाँ भोजन करने,हर बार आप नीति दीदी के यहाँ खाते हैं इस बार मेरे यहाँ खायें ऐसा बोला है। महाराज जी रणजीत भैया के यहाँ जाते लेट हो जाएगा थोड़ा सा चावल भी खा लें,ये मीठा लें ऐसा कर मैं बोलती रही और वो एक एक कवा सभी का लेते रहे।
इतने में उभय राम भैया जी पूजा की तैयारी के लिए गए और महाराज जी को मैं आराम करने कमरे में छोड़ने गई। इस बीच हमारी बात चीत और हँसी चलती रही।
12.30 बजे का समय तय था पूजा शुरू करने का। कल्याणी दीदी विधि विधान शुरू करने मेरे साथ चल पड़ीं और महाराज जी को हिम बाद में बुलायेंगे तय हुआ। उनको आराम करने छोड़ हम घर में ही हमारे ऑफिस की तरफ़ चल पड़े।
पूजा आदि कल्याणी दीदी ने विधि पूर्वक पूरी की।
रोज़ का हमारा भोजन का समय 1-2 के भींच का होता था। जब उभय राम भैया जी महाराज जी को लेने गए तब मैं सोच रही थी कि ये कैसे मैंने मिस कर दिया कि बाकी लोगों ने भोजन नहीं किया और अब ज्ञान पूजा है। महाराज जी ही हमेशा कहते थे कि पेट भरा रहे तो ज्ञान पूजा में,किसी भी काम में ध्यान अच्छे से लगता है। और मैं ये कैसे मिस कर दी सोच रही थी।
खैर देखा जाएगा सोचके के मैंने सभी से कहा कि आज महाराज जी कुछ अच्छी बात करेंगे जिसमें ईश्वर कहाँ है बतायेंगे और यही ज्ञान पूजा है।
महाराज जी ने मुझे कहा नीति तुम बोलना शुरू करो। मैंने शुरुवात की और महाराज जी ने आगे बढ़ाना शुरू किया। समय लगभग 1.30 होगा। महाराज जी ने बोलना शुरू किया,नियम पे बात की,क्या हम सिर्फ़ पैदा होने और मरने के लिए आए हैं ? कैसे सारा eco-balancing काम करता है,बहुत सारे उदाहरणों के साथ वो बात करते रहे। ईश्वर दिनचर्या में कहाँ है,कैसे समझ आता है,अनुभव में आनंद,कार्य- व्यवहार में नियम और विचार काल में समाधान,आचरण काल में न्याय को एक्ज़ाम्पल्स से बार-बार बोलते रहे। मैंने उन्हें धीरे से कहा कि महाराज जी किसी ने भोजन नहीं किया है सभी को भूख लगी होगी,वो बोले अरे तो खत्म करें,मैंने कहा ये जो बोल रहे हैं उसको पूरा कर दें। ऐसा मैंने दो बार कहा और महाराज जी बोलते ही रहे,समझाते रहे,आवाज़ धीमी और उतनी स्पष्ट नहीं थी पर सभी सुनते भी रहे। वो जीवन मृत्यु पर और पैदा होने से मरने तक,उस बीच जीने और मरने के बाद की कई बातें करते रहे। सिर्फ़ भौतिक दुनिया में सब कुछ नहीं है,ईश्वर को समझने भीतर की यात्रा और ईश्वर को समझ के जीने पर आनंद,नियम,समाधान,न्याय कैसे जीने में आता है बोलते रहे-बोलते रहे।
करीब 3 बजे उनको लेने गाड़ी आई। तब तक वो बोल ही रहे थे। गाड़ी के आने की सूचना आते ही उन्होंने बोलना बंद किया।
ये उनको ले कर गाड़ी तक छोड़ने गए।
मैं पीछे पाछे गई और जब महाराज जी गाड़ी में बैठे,मैं पांव छुई तो मेरा हाथ पकड़ बोले नीति अब तुम मेरे पाँव कभी मत पड़ना। मैंने पूछा क्यों महाराज जी ? तुम ऊँचे स्थान पर पहुँच गई हो,मैं अभी छोटा हूँ,इसलिए मेरे पाँव नहीं पड़ना। उन्होंने हाथ जोड़ मेरी आँखों में आँखें डाल दो बार यही बोला। दोनों बार मैंने कहा आप मेरे गुरु हैं,मैं आज जहाँ हूँ आप के कारण।
बस फिर गाड़ी चालू हुई और वो लोग चले गए।
काम के समय अपना फ़ोन मैं कमरे में ही रख देती हूँ। इसलिए मैंने देखा नहीं।
थोड़ा फ्री हुई तो देखा कई मिस्ड कॉल थे।
इतने में फेसबुक पे गेंदलाल भैया की पोस्ट देखी कि महाराज जी ने अपना शरीर त्याग दिया। मुझे याद आया कि करीब 7pm के आस पास उभयराम भैया जी का मिस्ड कॉल अभी ही देखा था।
मैंने तुरंत कॉल किया। उन्होंने यही बताता कि महाराज जी ने शरीर त्याग दिया। ऐसा हुआ क्या 3.30 बजे के बाद पूछने पे उन्होंने जो बताया वो कुछ यूँ था-महाराज जी के साथ हम रणजीत भैया जी के यहाँ पहुँचे। अंबा दीदी जी ( बाबा जी की बेटी और हमारी गुरु बहन) भी पहुँच गईं थी। सभी भोजन करने बैठे और महाराज जी के हाथ से चम्मच गिर गई। वो एक तरफ़ झुके हम लोगों को लगा वो चम्मच उठाने झुक रहे हैं पर वो लुढ़क रहे थे। सब ने तुरंत उनको सम्भाला,आनन फ़ानन में उनको पास में एम्स अस्पताल ले कर गए। बाक़ी की विस्तृत जानकारी संकेत भैया की पोस्ट में थी ही पर लिख ही देती हूँ। त्योहार होने के कारण डॉ नहीं थे। संकेत भाई जी ने अछोटी से वहाँ के डॉ को कॉल किया। एक महिला डॉ आयीं और महाराज जी को चेक किया पर तब तक महाराज जी ने शरीर त्याग दिया था। उन्हें कार्डियक अरेस्ट हुआ था।
महाराज जी ने जो ज्ञान पूजा की,हमारे जी संवाद रहे वो मृत्यु संस्कार हैं। उनका सुख का भाव,उनका भाव पूर्ण सेशन बच्चों के साथ,तृप्त हो भोजन करना और फिर रणजीत भाई जी के घर पहुँच ही जाना-सभी से वहाँ मिल लेना,अंबा दीदी से भी मिल लेना,कल्याणी दीदी और उभयराम भैया जी के साथ आखरी भोजन करना ( वो रोज़ ही होता होगा)। ऐसा संयोग सुखद रहा।
एक और गौर करने वाली बात थी कि उनका शरीर त्यागना सुन के मेरे आँसू नहीं निकले और ना ही दुख हुआ कि उनको मिस करूँगी। बाबा जी कहते थे अस्तित्व में दूर पास कुछ नहीं होता। शरीर भौतिक है वापस मिट्टी ( पदार्थ अवस्था) हो जाएगा,रूप परिवर्तन का स्वरूप है। संबंध तो शाश्वत हैं।
महाराज जी ने अपनी ज़िंदगी में कई उपकार किए थे।
महाराज जी की अग्रिम शरीर यात्रा और सुखद सुंदर हो,पूर्ण हो और वो धरती को स्वर्ग होते देखें,मानव को देवता बनते देखें-ऐसी सुंदर खूबसूरत परंपरा बनते देखें।
नीति
2-11-2024
बारनवापारा
देव हिल रिसोर्ट