।। शोध विचार ।।

इन्सानियत के फ्रेम में ही इंसान सुरक्षित होता है और इसे कोई जाती अथवा वर्ग विशेष से कैद नहीं किया जा सकता। मौजूदा हालात में जब इन्सानियत की अकाल पडा हो वहां हम अपना पराया की दीवार खडी कर के क्या साबित करना चाहते हैं ? कोई कहता है कि “हम एक है तो सेफ है “, “बटेंगे तो कटेंगे”, और कोई कहता है कि ” हम अनेक है लेकिन अखण्ड है “। इस दोनों लाइन को कहने वाला “इन्सान” है, वह हमें क्यों नहीं दिखाई देता ? एक तरफ “वसुधैव कुटुम्बकम,” One Earth, One Family, One Future” की विचारधारा, फिर बटेंगे की बाउंड्री क्यों ? जब तक व्यक्ति में व्यक्तिवादिता और समाज में सामुदायिकता पनप रहा हो उस स्थिति में मानविकता और सामाजिकता की मधुरिम संगीत हमें कहां सुनाई देगा चाहे शब्द या भाषा रूप में सामरसता की बात कितनी ही करले ? आवश्यकता एवं अनिवार्यता इस बात की है कि “मानव जाति एक है और मानव समाज अखण्ड है ” देर सबेरे इस तक हमें पहुंचना ही होगा अन्यथा “मानव” इस धरती पर बचेगा की नहीं, यहां तक हम पहुंच चुके हैं ।

निरोज
तारीख :24/11/2024,Sunday
Sbp express, Time. 3.26 am.