ना सोचा था कभी ?

अस्तित्व इतना व्यवस्थित है।

और हम मानव भी उस पूर्ण व्यवस्था का एक हिस्सा।

मैं भी हवा! पानी ,पेड़! पौधे। जैसी ही एक व्यवस्था हूँ।
जिसे सिखा ,समझा और जिया जा सकता है।

समझना ही मेरा सुख हो सकता है।

और समझाना ही उपकार।

इस समझ में ही मेरी निरंतरता है।

और इस समझ से ही है मेरे होने का प्रमाण!

जीवन जीवन साथ है। समझने के लिए।

और कितना सुखदाई है? एक दूसरे का हाथ पकड़, पूर्णता की ओर बढ़ना।

आज की अपनी स्थिति को गति देना।

और सब की स्थिति को समझ पाना।

चलो इस पूर्ण ऊर्जा में ऊर्जीत हो।

चल पाए अपनी दिशा की ओर।

चलो इस शरीर यात्रा को सफल बनाएं।

क्योंकि इस तरह का उत्साह नहीं कोई और।।

आज लग रहा है, प्यार हो गया है खुद से।

अपनी कल्पनाशीलता से।

आज दिख रही है।

स्वयं में विश्वास की एक झलक।

और अपने विचार का फैलाव।

जो हर पल अपनी मान्यताओं को सुलझाने में लगा है।

चाह है तो, उस पल की।

जब जो जैसा है,वैसा समझ आ जाए।।

पूजा