मध्यस्थ दर्शन के आलोक में

-: समस्याएँ, समाधान और सह-अस्तित्व :-

अंधकार जब छाया,
मानवता घबराई, भरमाई,
दिव्य मानव ने मानव को,
राह नई दिखाई।

युद्धों की ज्वाला भड़की,
शांति की पुकार जगी,
मध्यस्थ दर्शन का उदय हुआ,
मानवता फिर जागी।

समस्याएँ ही तो नींव हैं,
ज्ञान और बोध की,
संशोधन से ही मिलती,
राह दिव्य शोध की।

समस्यायऐं जब पडी़ भारी,
श्रद्धेय बाबाजी ने थामा,
विकल्प दिया मानवता को,
समस्याओं को जब जाना।

शस्त्र, सूद, स्वार्थ,भ्रम
का जाल मानव जबजब बुना,
सार्वभौमिकता में,
अड़चन यही बना।

व्यक्तिगत स्वार्थ से बचना,
सार्वभौमिकता अपना,
सह-अस्तित्व में जीना,
मानव का है सपना।

जीना, जीने देना,
समझना, समझाना,
सह-अस्तित्व का सार,
यही है समझाना।

सार्वभौमिक सोच, व्यवहार,
आचरण अपनाना,
सुखी, समृद्ध ,नीत्य शुभ की,
सर्व मानव की मंगल कामना।

... विनोद मधुकर म्हात्रे
वरोडा़,चंद्रपुर, महाराष्ट्र.

Vinod Madhukar Mhatre ji

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