गर्मियों की छुट्टियों की बात है मैं और मेरी छोटी बहन अपने बच्चों को लेकर अपनी मम्मी के यहां छुट्टियां बिताने गई थी मेरी छोटी बहन की बिटिया का नाम है रितिका तथा मेरे बेटे का नाम है प्रियांशु जिसे घर में सभी काकू कहते हैं ।
दोनों बच्चे डाइनिंग टेबल के आसपास घूमते हुए खेल रहे थे इतने में मेरे बेटे का पैर, और सिर डाइनिंग टेबल के पाए पर लग गया तथा वह जोर-जोर से रोने लगा ।
इस पर मेरी छोटी बहन ने पाए को मारते हुए कहा देखो मैंने इसकी पिटाई कर दी है क्योंकि इसके कारण आपको चोट लगी थी ।
लेकिन इतने में मेरी मम्मी आई तथा मेरी मम्मी ने काकू को कहा नहीं काकू बेटा आप को चोट पाए के कारण नहीं लगी है ,बल्कि जब आप खेल रहे थे तो जल्दबाजी में आपका ध्यान पाए की तरफ नहीं गया और आपका सर इससे टकरा गया अतः आपकी असावधानी के कारण आप को यह चोट लगी है। देखो अब ध्यान से चलोगे तो कभी भी चोट नहीं लगेगी।
ऐसा सुनकर मेरा बेटा अपनी नानी को देखने लगा और हां की मुद्रा में,सहमति में ,सिर हिलाने लगा ,जैसे वह समझ गया है और रोना भी भूल गया ।
साथ ही उसने नानी को कहा कि हां नानी आप ठीक कह रहे हो मुझे ध्यान देकर चलना और खेलना चाहिए ।
आगे से मैं आपकी बात का ध्यान रखूंगा ।

तथा फिर मम्मी ने मेरी छोटी बहन चेष्टा की तरफ मुखातिब होकर कहा कि देखो अगर हम बच्चे को उसकी असावधानी की गलती नहीं बताएंगे तो बच्चे के अंदर दो बातें बैठ जाती हैं एक तो यह है कि जब भी आपको चोट लगती है दूसरे की गलती के कारण ही लगती है और दूसरा ये कि
आपको जिससे भी चोट लगे आपको उससे बदला लेना है।।
यह दोनों बातें अगर मानसिकता में बैठ जाती है यही आगे जाकर परिवार में झगड़े का कारण , कारपोरेट जगत में गलतियों का कारण ,समाज में अपराध का कारण और विश्व स्तर पर युद्ध का कारण बन जाती है।।
और यही कारण है कि आज हम सभी गलती को गलती से रोकने का;
अपराध को अपराध से रोकने की ;
और
युद्ध को युद्ध से रोकने की मानसिकता की पैरवी करने लगे हैं।

जबकि गलती को गलती से रोकना
अपराध को अपराध से रोकना
ओर युद्ध को युद्ध से रोकना समाधान नहीं है, और ये संभव भी नहीं है ।
क्योंकि समस्या से समस्या का ही जन्म है।।
सच्चाई ये है की विरोध का शमन ( शांति कारक प्रवृति से ), ही होता है।।
किसी भी विरोध को, हम स्नेह से ही स्नेह में बदल सकते हैं ।
स्नेह सभी को स्वीकार है।
विरोध ,दमन,युद्ध,आवेश,किसी को स्वीकार नहीं ,इसीलिए जो भी इन विरोधी भाव के साथ होता है वह व्यक्ति ही सबको अस्वीकार होता जाता है।।
इसीलिए आवेश ,युद्ध,प्रतिक्रिया,स्वयं में समस्या है,तो समस्या के जनक है।
इनको समाधान के रूप में देखना हमारी मजबूरी है ,नासमझी है।
कब तक?
जब तक हम में विकल्प नहीं देखता।।
विकल्प है ; समझदारी ,समझ ओर ऐसी समझ जो स्वयं को स्वीकार हो और सबके लिए सुखमयी हो ।।

Rekha Sharma ji

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