सही में एक

हम जिए जा रहे है,
सब भी जिए जा रहे है,
फिर भी जीना जीना क्यों न लगे
इसको मनुष्य संघर्ष है ऐसा बतलाए।

संघर्ष इसलिए जीवन होना सबको स्वीकार होने लगा,
फिर भी सुख से अभी तक permanant हुआ नहीं रहना।

बहुत लोग मिले जिन्होंने उत्पादन से प्रकृति में रहना सुख माना,
बहुतों ने व्यवसाय करके परिवार में दायित्वों निभाने को सुख माना,
तो कुछ ने शिक्षा कार्य में भागीदारी देकर अच्छा काम करना सुख माना,
तो कुछ ने so called meditation me शांति की अनुभूति को सुख माना !!!

कार्यक्रम में सुख को ढूंढा,
सुख दुख रूप है यह पाया,
संसार असार और मिथ्या का सागर बतलाया,
परिवार के लिए जीवन न्योछावर किया,
फिर भी परिवार में अलगाव, अविश्वास के अलावा कुछ नहीं पाया !!

संसार को छोड़ना ही सुख की स्थली बताया,
खुद को पहचानना आंखे बंद करके अनुभव का मार्ग बताया,
रोशनी की प्रतीति को देखना ज्ञान का उजागर होना बताया,
मानव को मानव से दूर जाना और प्रकृति में संन्यास लेकर बैठना सुख बताया।

मेरे आज इस संसार में आने का प्रयोजन फिर भी हाथ नहीं आया,
मन की शांति साथ जीने में नहीं सबको छोड़कर ऐसे बताया,

इस संसार को ही रहने जैसा बनाए,
समझ के ज्ञान के दीप अध्ययन से जलाए,
आओ मिलकर एक अनुसंधान को पढ़ाए,
सहअस्तित्व ही अस्तित्व में सुख का प्रमाण है,
उसे साथ मिलकर ही जीवन का लक्ष्य प्रमाण करे!!

कार्यक्रम सबके अनेकों है समृद्धि के,
पर समाधान से जीने एक समझ के साथ चले,
अखंडता का लक्ष्य खंडित मानसिकता से नहीं होता,
क्योंकि अस्तित्व भी खंडित नहीं रहता,
निरंतरता को पाना है, तो नित्य वर्तमान को देखना आवश्यक बना रहता है।।


N. H. Shah


Neelam H Shah ji

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