“मौलिकता”
हर वस्तु में है गुण विशेष,
प्रजाति अपनी, रूप विशेष।
दो अंश, तीन अंश का भेद,
मौलिकता का यही है खेद।
दूब की अपनी है पहचान,
आम में न उसका है विधान।
जीव जगत में वंश की रीत,
मौलिकता की यही है जीत।
मानव में ज्ञान का प्रकाश,
पूरकता-उपयोगिता का वास।
समाधान, समृद्धि का लक्ष्य,
सुख-शांति का यही है पक्ष।
ज्ञान का वैभव, अनुपम शान,
मानवता का यही है मान।
एक जाति, न कोई भेद,
सह-अस्तित्व का यही है खेद।
उपयोगी स्वयं, पूरक औरों के,
मूल्यों से सजे, ये जीवन के।
आनंद, संतोष, शांति का गान,
मौलिकता का यही है मान।
... विनोद मधुकर म्हात्रे
वरोडा ,चंद्रपुर ,महाराष्ट्र.
( प्रणेता: श्रद्धेय ए . नागराज जी, मध्यस्थ दर्शन सह-अस्तित्ववाद के आलोक में)