धनुष विद्यालय के ग्राउंड में खेल रहा था। उसे एक पतंग जमीन पर गिरी हुई दिखाई दी। उस पतंग का रंग पीला पीला सा था। पतंग उठाते ही वह इधर-उधर देखने लगा। तभी उसका मित्र भागता हुआ आया और उससे कहा कि तुम यहां पतंग जमीन पर छोड़ दो धनुष ने इनकार किया। मैं क्यों पतंग को नीचे रख दूं तभी उसका दोस्त गिरते पड़ते वहां से भाग जाता है। धनुष पदम को जोर से हाथ में पकड़ कर इंतजार करता है। सोचता है किसकी पतंग है या वह तभी कई सारे बच्चे भागते हुए आते हैं। उनके पीछे-पीछे मोहल्ले का सबसे मजबूत लड़का के शब्द धनुष के सामने आ खड़ा होता है। वह पूछता है धनुष! मेरी पतंग तुम्हारे हाथ में क्या कर रही है। मैं तुम्हें पतंग की तरह हवा में उड़ा दूंगा, धनुष हंसता है और पतन को केशव के सामने फाड़ देता है। यह देख के सब आग बबूला हो जाता है और धनुष का हाथ पकड़ने की कोशिश करता है।
धनुष फटाफट वहां से भागता है कि सब उसके पीछे भागता है। किसी के हाथ धनुष की कमी रहती है। वह उसे फाड़ देता है। तभी विद्यालय की घंटी बजती है। ऐसे में सभी बच्चे लाइन में जा खड़े होते हैं। केशव और धनुष भी अपनी अपनी लाइन में खड़े हो जाते हैं। वहां की प्रिंसिपल मैडम आती हैं और केशव और धनुष को ढूंढती हैं। फिर उनका नाम सभा में लेते हैं। मैं घोषणा करती है कि केशव और धनुष ने विद्यालय के नियमों को तोड़ा है, इसलिए उन्हें 2 हफ्ते के लिए बर्खास्त किया जाता है। यह सुन धनुष बहुत ही उदास हो जाता है।
वह घर पहुंचता है। उसकी कमीज भी फटी हुई थी। धनुष की मां और पिता दोनों काम पर गए थे। वह फटाफट अपनी कमीज को छुपा देता है और दूसरी कमीज पहन लेता है। फिर पढ़ाई करने के लिए बैठ जाता है। पढ़ाई करते हुए उसे नींद आने लगती है। वह सो जाता है तभी घंटी बजती है। वह दौड़ कर दरवाजा खोलने जाता है। उसके माता-पिता दोनों काम करके घर आए थे। वे दोनों उसके लिए खास गुलाब जामुन लाए थे। वह खुश नहीं होता है। माता पिता को समझ नहीं आता है। वे पूछते हैं क्या हुआ अच्छा नहीं लगा। वह किसी बात का उत्तर नहीं देता है। फिर माता-पिता हाथ मुंह धोने चले जाते हैं और कुछ काम करने लगते हैं। धनुष अपने कमरे में जाकर पढ़ाई करने लगता है। 5 मिनट में ही उसे सुबह की लड़ाई याद आ जाती है।
वह सोचने लगता है कि कैसे उसने केशव की पत्नी को पाड़ा ऐसा सोचते सोचते एक घंटा बीत जाता है। धनुष के पिता आते हैं और हंसकर धनुष्य कहते हैं। क्या बात है आप पहले ही पन्ने पर हैं। लगता है आपने कुछ भी पढ़ाई नहीं करी है। धनुष बातें बनाने लगता है तभी धनुष की मां कर दोनों को भोजन के लिए आमंत्रित करती हैं। धनुष के पिताजी और धनुष मां के साथ टेबल पर बैठ जाते हैं। धनुष के माता-पिता धनुष से बात करने का प्रयास करते हैं पर वह कर नहीं पाते। धनुष चुपचाप भोजन करता है। अगले दिन वह तैयार हो जाता है और घर से निकल जाता है। माता-पिता को बताता नहीं है कि उसे विद्यालय से बर्खास्त किया है। वह नदी के किनारे जाकर बैठ जाता है। वह नदी में कंकड़ पत्थर फेंकता रहता है। शाम को घर आता है तो उसके माता-पिता तो उसे पता लगता है कि रात को उसके दादा जी घर पहुंच रहे हैं।
धनुष को खुशी नहीं आती है, उसे लगता है। अब उसे अपने कमरे में अपने दादाजी को भी ठहराना पड़ेगा। धनुष के माता-पिता धनुष को बुरा भला कहते हैं, धनुष उदास हो जाता है। रात को दादा जी आते हैं और बड़ी सारी चीजें धनुष के लिए लाते हैं। धनुष का मुंह बना ही रहता है। किसी तरह से भोजन होने के पश्चात दादाजी का सामान धनुष के कमरे में रख दिया जाता है। धनुष देर रात तक घर की बगिया में झूला झूलता रहता है। फिर सब सो जाते हैं तो अपने कमरे में आकर दादाजी के बगल। सो जाता है। सुबह जब उठता है तो उसे कमरे में खूब उजाला दिखता है। उजाले के साथ-साथ भरपूर सफाई दिखती है। दादा जी ने सुबह जल्दी उठकर उसके सामान के रखरखाव व्यवस्थित किया होता है। धनुष को बड़ा ही अच्छा लगता है। कुछ सोचने लगता है। दादा जी का आना ठीक ही रहा। अब माता-पिता मुझे कमरे की सफाई के लिए ताना नहीं मारेंगे। उत्साह से वह उठता है और तैयार होकर। स्कूल जा रहा हूं। ऐसा कहता है फिर वह जाकर नदी के किनारे बैठ जाता है। दिन भर पेड़ों में फूलों के साथ तितलियों के साथ मस्ती करता है। कागज की नाव भी बनाता है। कुछ घंटों बाद वह सोचता है कि अब उसे कुछ पढ़ाई भी करनी चाहिए। उसे दुख लगता है कि वह क्लास नहीं जा पा रहा है। अपनी पुस्तक को खुलता है तो उसे 5 मिनट में नींद आ जाती है। वह नदी के तट पर ही सो जाता है। अब शाम हो गई है और धनुष घर नहीं आया है। उसके दादाजी बहुत परेशान हो जाते हैं वह। फोन की डायरी को खोजते हैं और उसमें उन्हें विद्यालय का फोन नंबर मिलता है। वह विद्यालय को फोन लगाते हैं। उन्हें पता चल जाता है कि धनुष का स्कूल को स्कूल से बर्खास्त किया गया है। थोड़ी ही देर में घंटी बजती है और दादाजी दरवाजा खोलने जाते हैं। वहां धनुष खड़ा होता है। दादा जी को वह झूठ बोल देता है कि वह अपने दोस्त के घर गया था। दादा जी कुछ भी नहीं बोलते हैं। धनुष अपना स्कूल का बैग कमरे में लटका रहता है। फिर नहा कर अपने कपड़े बदल लेता है। तभी धनुष के माता-पिता घर आते हैं।
दादाजी उनसे भी कुछ नहीं बोलते हैं। भोजन करने के बाद सब सो जाते हैं। फिर सुबह होती है और धनुष स्कूल की पोशाक में घर से निकल जाता है। दादाजी टहलने के बहाने घर से निकलते हैं और पीछे पीछे धनुष के जाते हैं धनुष फिर से नदी के तट पर। जाता है पुस्तक पढ़ने के लिए खुलता है जैसे ही पुस्तकों खोलता है तभी पीछे से दादाजी आ जाते हैं। उन्हें देख धनुष घबरा जाता है। फिर दोनों साथ में बैठ जाते हैं। धनुष दादा जी को अपनी लड़ाई के बारे में बताता है कि शव के साथ सारी घटना को सुनाता है। दादाजी भी अपनी घटना बचपन की सुनाते हैं। इस तरह दोनों में बातें शुरू हो जाती हैं। दो-तीन घंटा बीत जाता है। धनुष के दादाजी धनुष को कहते हैं अब घर चलो नहीं तो माता-पिता घर पर आ जाएंगे। दोनों घर पर पहुंच जाते हैं। रात के भोजन में धनुष दादाजी के स्थानों को तरसता है। दोनों खुशी-खुशी खाना खाते हैं। धनुष के माता-पिता यह देख बहुत खुश होते हैं। धनुष दादाजी का सम्मान करता है। यह उन्हें अच्छे से दिखाई देने लगता है।
अगले ही दिन दादाजी और धनुष एक साथ नदी के तट पर पहुंचते हैं। धनुष दादाजी को आने खेल सिखाता है। वह दोनों खूब हंसते हैं। फिर दो-तीन घंटे बाद दादा जी बोलते हैं कि पढ़ाई का कैसा कर रहे हैं। आप दिनेश बोलते हैं कि अब डेढ़ हफ्ता उसे खुद ही पढ़ना पड़ेगा। दादा जी धन इसको बोलते हैं कि उसे आज थोड़ी पढ़ाई जरूर करनी चाहिए। धनुषा में भरता है और सिर हिलाता है। फिर पढ़ने के लिए पुस्तक खुलता है। 5 मिनट बाद उसे नींद आने लगती है। वह सिर्फ को पेड़ के सहारे टिक आता है और सो जाता है। दादा जी यह देख हैरान रह जाते हैं। 3 घंटे बाद धनुष को दादाजी उठाते हैं और कहते हैं कि घर चलना चाहिए। वे दोनों हंसते खेलते घर आते हैं। नहा धोकर धनुष फिर से पढ़ाई करने के लिए कुर्सी टेबल पर बैठ जाता है। दादाजी बगल के बिस्तर पर आराम से लेट जाते हैं। थोड़ी देर में पलट के देखते हैं कि धनुष टेबल पर सिर रखकर ऑन रहा है। दादाजी को समझ में आ जाता है कि धनुष का मन पढ़ाई में नहीं लगता है। शाम को धनुष के माता-पिता घर आते हैं। दादाजी भोजन करते हुए घोषणा करते हैं कि उन्होंने तय किया है कि वे धनुष को पढ़ाएंगे। धनुष के माता-पिता को भी बहुत अच्छा लगता है। धनुष हैरान हो जाता है और साथ ही खुद भी हो जाता है।

अगले दिन फिर से दोनों नदी के तट पर जाते हैं। आज दादाजी धनुष को कहते हैं। आओ पहले पढ़ लेते हैं। फिर खेलकूद करेंगे। धनुष मान जाता है और दादा जी के साथ पढ़ाई करने लगता है। दादा जी उसे बहुत ही रुचिकर ढंग से पढ़ाते हैं और धनुष की छोटी-छोटी जिज्ञासाओं का भी समाधान करते हैं।

धनुष को समय का पता ही नहीं लगता है। इसका मन पढ़ाई में लग गया है। रोज दादाजी और धनुष नदी के तट पर पढ़ाई करते हैं। धनुष को हैरानी होती है कि वह पढ़ाई में पारंगत होता जा रहा है। रात को धनुष को सपना आता है कि वह अपनी क्लास गया और वहां उसने अध्यापक के सारे प्रश्नों के उत्तर दीजिए। सुबह उठकर धनुष दादाजी को कहता है। आज दादाजी नदी के तट पर नहीं जाएंगे। आज स्कूल जाना है।
दादाजी मुस्कुराते हैं और धनुष से कहते हैं। आज मुझे भी जाना है। आपकी दादी जी वापस आ रहे हैं। यह सुन दोनों को बहुत ही धक्का लगता है। उसे दादा जी के साथ बहुत ही अच्छा लगने लगा था। दादाजी को छोड़ने माता-पिता चले जाते हैं और दोनों ही धीरे-धीरे अपने विद्यालय की तरफ पैदल चलने लगता है। रास्ते में उसे नदी का तट दिखता है और वह उदास हो जाता है। स्कूल में धनुष के सारे दोस्त धनुष की को देख खुश हो जाते हैं। धनुष से कहते हैं कि केशव ने तुम्हारी टेबल पर क्या लिखा है। धनुष शांति से सुनता है और अपनी कक्षा में जाकर बैठ जाता है। उसकी टेबल पर केसर ने पेंसिल लड़की का नाम लिखा था और दिल भी बनाया था। धनेश बिल्कुल भी गुस्सा नहीं होता है क्लास में अध्यापक के। अच्छी तरह से पढ़ाई करता है। हर बात को ध्यान से सुनता है और हर महत्वपूर्ण मुद्दे को नोट करता है। शाम को वह घर पहुंचता है। नहा धोकर वह पढ़ने के लिए टेबल पर बैठता है परंतु उसे फिर से नींद आने लगती है। वह अपनी आंखों को पानी से धोकर आता है। फिर से पड़ने लगता है। 5 मिनट बाद धनुष को फिर से नींद आती है। वह परेशान हो जाता है। वह सोचता है। मैं अकेला पढ़ता हूं तो पढ़ नहीं पाता हूं। दादा जी के साथ अच्छी पढ़ाई कर लेता था। मैं पर अब क्या करें, शाम को माता-पिता आते हैं। धनुष को भोजन करते समय उदास पाते हैं। तभी दादाजी का फोन आता है। मां दौड़ के धनुष को बुलाती है। धनुष खुशी-खुशी दादा जी से बात करता है। कक्षा में जो कुछ उसने पढ़ा था उसको बताता है धनुष। मैं पढ़ाई को लेकर निष्ठा देख उसके माता-पिता बहुत खुश होते हैं। धनुष दादा जी से कहता है कि आप कब आएंगे मुझसे के लिए फोकस नहीं होता है। बहुत नींद आती है धनुष के दादाजी। उसको कहते हैं कि इस समस्या का उसको समाधान खुद से सोचना चाहिए। धनुष वापस आकर भोजन करता है। अपने कमरे में बैठता है और फिर पढ़ने का प्रयास करता है। हमेशा की तरह उसको नींद आ जाती है या उसको कभी कुछ और विचार आने लगता है। इस तरह से उसका समय बीता है और पढ़ाई नहीं होती है। नींद उसकी खुले तो वह देखता है कि भाई स्कूल जाने का समय हो गया है। उसी यह ध्यान में आता है कि उसने होमवर्क नहीं किया है। वह जैसे तैसे तैयार होता है, उस स्कूल जाता है। क्लास में वह धीरे-धीरे पिछड़ने लगता है। क्लास आगे बढ़ जाती है और वह क्लास में पीछे होने लगता है। इस तरह वह थोड़ा सा परेशान होने लगता है। कक्षा में उसकी गति अब वैसी नहीं रहे। ध्यान भी उसका भटकने लगता है। अब धीरे-धीरे करके उसे केशव की हर हरकतों का उसको जवाब देने का मन करता है। उसका ध्यान पढ़ाई में ना लगे पर लड़ाई करने का भी मन करता है। इस तरह से। समय बीतता जाता है, उसे समझ नहीं आता है कि मैं कैसे करूं तभी एक दिन दादाजी। फोन आता है और फोन पर दादाजी बोलते हैं कि मैं आ रहा हूं। आपसे मिलने के लिए बहुत ही खुश हो जाता है। दोनों धनुष का एग्जाम आने वाला होता है। उसे बहुत सारी पढ़ाई करनी होती है और वह स्वयं पढ़ी नहीं पाता है। वह इतना खुश होता है तो वह रात को दादा जी और दादी जी दोनों आते हैं और धनुष बहुत खुश हो जाता है। फिर रात को सोने के बाद सवेरे जब उठते हैं तो दादा जी से बात करते हैं। धनुष की दादा जी मैं विद्यालय से आऊंगा तो आपके साथ में पढ़ लूंगा तो दादाजी बोलते नहीं। आप मेरे साथ नहीं पड़ेंगे। पर मैं आपको सिखाऊंगा कि आप अपने में कैसे पढ़ सकते हैं। बहुत ही खुश हो जाता है। बोलते ठीक है, वह विद्यालय जाता है। विद्यालय से जब वापस आता है तो सारी किताबों को अच्छे से लाइन से रखता है। दिल से जाता है और बढ़िया से टेबल पर बैठ जाता है। फिर दादा जी आते हैं और फिर उससे पूछते हैं कि बताओ जगह पढ़ाई करने बैठते हो और आपको मन नहीं लगता है। तब क्या करेंगे, गणेश बोलता है। मैंने सब प्रयास कर लिया नहीं, सोच पा रहा हूं तो दादा जी बोलते हैं कि मैं यह पढ़ाई क्यों कर रहा हूं। क्यों पहचान जब भी मैं क्यों पर जाऊंगा। मेरा ध्यान बना रहेगा। धनुष को यह बात बहुत ही अनोखी लगती है। वह दादाजी के सामने बैठकर पढ़ाई शुरु करता है और जब उसको नींद आए वह अपने आप से पूछता है कि वह क्यों पढ़ाई कर रहा है,उत्तर नहीं सोच पाता है|
फिर दादाजी से पूछता है और दादाजी समझाते हैं –हर “क्यों है ” का उत्तर “क्या है” से निकलता है | मानव इस उत्तर से खुश हो जाता है | दादीजी बोलती हैं “परीक्षा के बाद हम, इस पर विस्तार से बात करेंगे |”
धीरे-धीरे करके, धनुष अपनी पढ़ाई को पूरा करता है और परीक्षा देने जाता है। परीक्षा देने जाता है तो उसके अच्छे नंबर आते हैं। अच्छे नंबर आते हैं तो वह दादाजी के पास दौड़ कर आता है। पढ़ाई में बहुत अच्छे नंबर आए तो दादाजी खुश होते हैं। दादी भी खुश होते हैं। मम्मी पापा भी उसके लिए बहुत सारी विशेष चीजें बनाते हैं और खुशी-खुशी सब लोग प्यार से खाते हैं।

Vidhi ji

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