• सजगता*


स्नेह की हो धुरी,
सरलता भी पूरी-
समझ है जरूरी,
हाँ, समझ है जरूरी।।
संग्रह से दूरी,
अभयता हो पूरी।
भाव और भाषा की जीने में दूरी
सही जाए ना।
नासमझी कैसी,कही जाए ना।।
दिन यूं निकलते,
प्रात-रात ढलते-
चैतन्यता में चित्रण बदलते।
चिंतन के चलते,
सजगता से प्रमाण पलते।।
क्षण बीता जाए,
होना क्यों बेहोश।
होश में जीना,
जीने में होश।।

सोनाली भारती
शिक्षिका,देवघर,झारखंड