सह अस्तित्व है व्यवस्था,उसमें अपना होना रहना   जान ।
मध्यस्थ दर्शन ने प्रामाणिकता पूर्वक प्रतिपादित किया है यही ज्ञान।1

व्यापक और इकाई है अविभाजित मान।
स्थिति ही गति में अभिव्यक्त यही है प्रमाण2

सम विषम मध्यस्थ गुण से सब में है परिणाम। मध्य क्रिया मध्यस्थ गति मध्यस्थ सत्ता ही है विभवमान ।3
संप्रक्तता ही नित्य प्रभावी यह सच्चाई मानव जान मानव ही मध्यस्थ गति में करती है व्यवस्था में योगदान ।4
रूप गुण स्वभाव धर्म में हर इकाई है अविभाजित विद्यमान।
अविभाज्यता में ही अध्ययन है शाश्वत मंत्र यह जान ।5
धर्म ही स्थिर निश्चित है सभी इकाइयों का यही है विधान ।
मानव ही सह अस्तित्व व्यवस्था की करता है पहचान।6
कल्पनाशीलता कर्म स्वतंत्रता की पूर्णता ही है मानव का सम्मान ।
अखंड मानव जाति की इसमें होती है पहचान। 6

गठन पूर्णता क्रिया पूर्णता आचरण पूर्णता से है  परिमाण
अखंड समाज सार्वभौम व्यवस्था  है सह अस्तित्व प्रमाण।7
ज्ञान संपन्नता पूर्वक अन्नयता को पाएं
समग्र व्यवस्था में
भागीदारी करके जीवन  सफल बनाएं।8
                          लेखिका सुनीता पाठक

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