घर को मंदिर बनाएंगे।
मानव श्रेष्ठता अपनाएंगे।
जो मुझे मानव संतान ना भी पहचाने
उससे भी संबंध निभाएंगे ।
हम स्थिति में गति करेंगे।
सबको मानव धर्म जी कर बताएंगे।
हम परिवार व्यवस्था में रहेंगे ।
समझदार परिवारों के सोपान बनाएंगे।
सभी पुराने अभ्यासों से पार पाएंगे ।
किसी भी परिस्थिति में स्थिति को व्यक्त कर पाएंगे।
लक्ष्य हमारे वही पुराने,
सुख शांति संतोष आनंद को अनुभव कर जाएंगे।
सहअस्तित्व की भाषा में तात्विक बौद्धिक व्यवहारिक विधि से समाधान उपलब्ध कराएंगे ।
घर में सभा पूर्वक स्वराज्य व्यवस्था की कड़ी बन जाएंगे ।
सारे द्वंद्व और भ्रम दूर करेंगे।
अखंड समाज सार्वभौम व्यवस्था स्थापित कर पाएंगे।
सुनीता पाठक 6-8-2020
अजय भाई की कविता से प्रेरणा लेकर