सुख की तो ठौर कहीं है संबंधों में जीकर मिली है
हम क्यों भरमाये बैठे हैं संवेदना के बाजारों में
सुख तो निश्चित होता है नियम पूर्ण आचारों में
वस्तुओं में फंसे रहे हम प्रिय हित लाभ की दृष्टि से
मुक्ति तो मिलती है भाई न्याय पूर्ण व्यवहारों से
अपने पराए से मुक्त हुए अखंड मानसिकता से युक्त हुये।
व्यवस्था में प्रमाणित होते न्याय धर्म सत्य पूर्ण विचारों से ।
अर्थोपार्जन की विधि बदलेगी
समझदारी पूर्ण कार्य व्यवहारों से ।
अखंड मानसिकता में ही सदुपयोग सुरक्षा नियोजित मानवीयता पूर्ण आधारों से।
समाधान समृद्धि प्रमाणित सदुपयोग सुरक्षा के निर्वाहों से।
लेखिका सुनीता पाठक